Tuesday, 23 January 2018

मित्रो आज नेताजी की 121वीं जयंती है, तो आइये जानते है उनका संक्षिप्त जीवन परिचय

मित्रो आज नेताजी की  121वीं जयंती है, तो आइये जानते है उनका   संक्षिप्त जीवन परिचय , नेताजी  सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा में कटक के एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। बोस के पिता का नाम 'जानकीनाथ बोस' और माँ का नाम 'प्रभावती' था। उनके पिताजी  जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वक़ील थे। प्रभावती और जानकीनाथ बोस की कुल मिलाकर 14 संतानें थी, जिसमें 6 बेटियाँ और 8 बेटे थे। सुभाष चंद्र उनकी नौवीं संतान और पाँचवें बेटे थे। अपने सभी भाइयों में से सुभाष को सबसे अधिक लगाव शरदचंद्र से था। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस  ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल में हुई। तत्पश्चात् उनकी शिक्षा कलकत्ता के प्रेज़िडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से हुई, और बाद में भारतीय प्रशासनिक सेवा (इण्डियन सिविल सर्विस) की तैयारी के लिए उनके माता-पिता ने बोस को इंग्लैंड के केंब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिया। अँग्रेज़ी शासन काल में भारतीयों के लिए सिविल सर्विस में जाना बहुत कठिन था किंतु उन्होंने सिविल सर्विस की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया। 1921 में भारत में बढ़ती राजनीतिक गतिविधियों का समाचार पाकर बोस ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली और शीघ्र भारत लौट आए। सिविल सर्विस छोड़ने के बाद वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गए। सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी के अहिंसा के विचारों से सहमत नहीं थे। वास्तव में महात्मा गांधी उदार दल का नेतृत्व करते थे, वहीं सुभाष चंद्र बोस जोशीले क्रांतिकारी दल के प्रिय थे। महात्मा गाँधी और सुभाष चंद्र बोस के विचार भिन्न-भिन्न थे लेकिन वे यह अच्छी तरह जानते थे कि महात्मा गाँधी और उनका मक़सद एक है, यानी देश की आज़ादी। सबसे पहले गाँधीजी को राष्ट्रपिता कह कर नेताजी ने ही संबोधित किया था। 1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया। यह नीति गाँधीवादी आर्थिक विचारों के अनुकूल नहीं थी। 1939 में बोस पुन एक गाँधीवादी प्रतिद्वंदी को हराकर विजयी हुए। गांधी ने इसे अपनी हार के रुप में लिया। उनके अध्यक्ष चुने जाने पर गांधी जी ने कहा कि बोस की जीत मेरी हार है और ऐसा लगने लगा कि वह कांग्रेस वर्किंग कमिटी से त्यागपत्र दे देंगे। गाँधी जी के विरोध के चलते इस 'विद्रोही अध्यक्ष' ने त्यागपत्र देने की आवश्यकता महसूस की। गांधी के लगातार विरोध को देखते हुए उन्होंने स्वयं कांग्रेस छोड़ दी। इस बीच दूसरा विश्व युद्ध छिड़ गया। बोस का मानना था कि अंग्रेजों के दुश्मनों से मिलकर आज़ादी हासिल की जा सकती है। उनके विचारों के देखते हुए उन्हें ब्रिटिश सरकार ने कोलकाता में नज़रबंद कर लिया लेकिन वह अपने भतीजे शिशिर कुमार बोस की सहायता से वहां से भाग निकले। वह अफगानिस्तान और सोवियत संघ होते हुए जर्मनी जा पहुंचे। सक्रिय राजनीति में आने से पहले नेताजी ने पूरी दुनिया का भ्रमण किया। वह 1933 से 36 तक यूरोप में रहे। यूरोप में यह दौर था हिटलर के नाजीवाद और मुसोलिनी के फासीवाद का। नाजीवाद और फासीवाद का निशाना इंग्लैंड था, जिसने पहले विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी पर एकतरफा समझौते थोपे थे। वे उसका बदला इंग्लैंड से लेना चाहते थे। भारत पर भी अँग्रेज़ों का कब्जा था और इंग्लैंड के खिलाफ लड़ाई में नेताजी को हिटलर और मुसोलिनी में भविष्य का मित्र दिखाई पड़ रहा था। दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। उनका मानना था कि स्वतंत्रता हासिल करने के लिए राजनीतिक गतिविधियों के साथ-साथ कूटनीतिक और सैन्य सहयोग की भी जरूरत पड़ती है। सुभाष चंद्र बोस ने 1937 में अपनी सेक्रेटरी और ऑस्ट्रियन युवती एमिली से शादी की। उन दोनों की एक अनीता नाम की एक बेटी भी हुई  जो वर्तमान में जर्मनी में सपरिवार रहती हैं। नेताजी हिटलर से मिले। उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत और देश की आजादी के लिए कई काम किए। उन्होंने 1943 में जर्मनी छोड़ दिया। वहां से वह जापान पहुंचे। जापान से वह सिंगापुर पहुंचे। जहां उन्होंने कैप्टन मोहन सिंह द्वारा स्थापित आज़ाद हिंद फ़ौज की कमान अपने हाथों में ले ली। उस वक्त रास बिहारी बोस आज़ाद हिंद फ़ौज के नेता थे। उन्होंने आज़ाद हिंद फ़ौज का पुनर्गठन किया। महिलाओं के लिए रानी झांसी रेजिमेंट का भी गठन किया जिसकी लक्ष्मी सहगल कैप्टन बनी। नेताजी' के नाम से प्रसिद्ध सुभाष चन्द्र ने सशक्त क्रान्ति द्वारा भारत को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से 21 अक्टूबर, 1943 को 'आज़ाद हिन्द सरकार' की स्थापना की तथा 'आज़ाद हिन्द फ़ौज' का गठन किया इस संगठन के प्रतीक चिह्न पर एक झंडे पर दहाड़ते हुए बाघ का चित्र बना होता था। नेताजी अपनी आजाद हिंद फौज के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा पहुँचे। यहीं पर उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा, "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा" दिया। 18 अगस्त 1945 को टोक्यो (जापान) जाते समय ताइवान के पास नेताजी का एक हवाई दुर्घटना में निधन हुआ बताया जाता है, लेकिन उनका शव नहीं मिल पाया। नेताजी की मौत के कारणों पर आज भी विवाद बना हुआ है। हम उनको आज श्रधा सुमन आर्पित करते है .

Thursday, 11 January 2018

क्या आप इस आधुनिक GPS के बारे में जानते है ??

हम आपकी क्षमता के अनुसार आपको रास्ता बताएँगे 
आज के प्रतिस्पर्धा के इस दौर में प्रत्येक माँ बाप का यह 
स्वपन होता हैं कि उनका बच्चा बुद्धिमान हो,
उच्च अभ्यास करने वाला हो और समाज में उच्च स्तर 
प्राप्त करने वाला बने। यह बच्चा क्या 
अभ्यास करेगा, उसका भविष्य कैसा होगा आदि जानकारी
 के प्रति ज्यादा उत्सुकता रहती है, 
और अगर यह जानकारी बच्चे कि बाल्यावस्था में या 
अभ्यास के महत्वपूर्ण पड़ाव के पहले मिल 
जाये तो माँ बाप इस बहुमूल्य जानकारी का सही उपयोग 
करके अपने बच्चे को सही मार्गदर्शन, 
प्रोत्साहन एवं योग्य क्षेत्र में शिक्षा दिलाने का अच्छा प्रबंध करके उनके श्रेष्ठ भविष्य निर्माण में 
सहयोग कर सकते हैं
मित्रो आजतक पुरे विश्व में सबसे ज्यादा प्रतिभाशाली व्यक्तित्व बिहार से ही हुवे है और निरंतर हमारे बिहार के बच्चे हर क्षेत्र में बिहार का नाम रौशन कर रहे है, परन्तु यह संतोषजनक नही है क्योंकि हजारो युवा अपने जीवन में उचित लक्ष्य प्राप्त करने में असफल रहते है , और उसका कारण है सही समय पर बच्चो को उचित मार्गदर्शन नही मिल पाना, बच्चे अपनी क्षमता के अनुसार करियर नही बना पाते जिसका नतीजा उन्हें जीवन भर किसी ऐसे कार्य को करते हुवे बिताना पड़ता है जिसमे उनका कोई रूचि ही नही है I आज विज्ञान के ज़माने में जापान की DMIT टेस्ट पद्धति  बच्चो के लिए GPS(ग्लोवल पोजिशनिंग सिस्टम) का काम करती है, इसके मदद से बच्चे अपने क्षमतानुसार अपने करियर का चुनाव कर आसानी से अपने लक्ष्य तक पहुँच सकते है I आपसे अनुरोध है की इस साल के बजट में बिहार के हर माध्यमिक विद्यालय के लिए कम से कम एक काउंसलर की नियुक्ति की जाए जो की इस वैज्ञानिक पद्धति के मदद से बच्चो को उनके जीवन का  सर्वश्रेष्ठ उपहार प्रदान करे I
पिछले कई सालों से इस प्रकार का मार्गदर्शन ज्योतिषशास्त्र की विभिन्न विधियों से किया जाता है
 लेकिन इस विधि में एक सामान रूपता नहीं पायी जाती है I इसलिए इस विधि में पूर्णतया विश्वास 
करना थोडा कठिन होता है। परन्तु अब इस महान वैज्ञानिक विधि से फिंगर प्रिंट के माध्यम से बहुत 
ही आसानी से, पूर्णतया सटीक मार्गदर्शन मिल सकता है। 
इसे ही Dermatoglyphics Multiple Intelligences Test (D.M.I.T) कहा जाता है।
इस वैज्ञानिक परिक्षण से किसी भी व्यक्ति की विभिन्न प्रकार की बुद्धि की जानकारी प्राप्त करके, उसमें क्या अच्छाईयाँ व् कमियां हैं, उसका स्वभाव, व्यवहार, पठन की रूचि, याद करने की क्षमता आदि कई पह्लुयों को जाना जा सकता है। इस जानकारी का उपयोग करके अपने बच्चे के लक्ष्य प्राप्ति में उपयुक्त कार्यवाही कर सकते हैं।