Friday, 15 March 2019

मैट्रिक परीक्षाके बाद अब लोगो को इसके परिणाम का इन्तजार है,मेरे तरफ से उन सभी माता -पिता और बच्चो के लिए एक महत्वपूर्ण सुझाव यह कि कैरियर के चुनाव का सही वक्त दसवीं कक्षा ही है,

मैट्रिक परीक्षाके बाद अब लोगो को इसके परिणाम का इन्तजार है,मेरे तरफ से उन सभी माता -पिता और बच्चो के लिए एक महत्वपूर्ण सुझाव यह कि कैरियर के चुनाव का सही वक्त दसवीं कक्षा ही है, क्योंकि यह एक ऐसा समय होता है जब छात्र-छात्राओं में सर्वाधिक अनिर्णय की स्थिति होती है पर साथ ही साथ उन्हें सबसे अधिक सही सुझाव और दिशा-निर्देश की भी आवश्यकता होती है। विषयों के चुनाव का यह सबसे सही वक्त होता है, पर्याप्त सोच-विचार कर अपनी रूचि के विषय का चयन उसमें कैरियर की संभावनाओं के मद्देनजर ही करना चाहिए। ऐसा नहीं कि आर्ट्स पढ़ने की इच्छा हो और साइंस में दाखिला लेने की मजबूरी, कॉमर्स में दिलचस्पी हो तथा इंजीनियरिंग कोर्स को अपनाने का दबाव, मेडिकल मे जाने की इच्छा हो, एम.बी.ए. मे दाखिला लेने की विवशता। इस तरह आधे-अधूरे मन से किये गये कैरियर के चुनाव में वांछित सफलता तो संदिग्ध रहती ही है, इच्छित नतीजे न मिलने से जीवन भर के लिए ही वह कोर्स अभिशाप बन जाता है। होना तो यह चाहिए कि आप जो भी कोर्स करने जा रहे हों, उसके बारे में अथवा उसकी संभावनाओं से आपको पूर्णतया वाकिफ होना चाहिए कि आखिर आप वह कोर्स किस लिये कर रहे हैं। कोर्स का अनायास चयन नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर न तो आप उस कोर्स के प्रति सीरियस हो सकेंगे और न ही अपने प्रति समुचित न्याय कर सकेंगे। आपको उक्त कोर्स में संतुष्टि भी नहीं मिलेगी, न पर्याप्त दिलचस्पी जगेगी और फिर नतीजा निराशा ही निराशा। 
इसलिए जीवन से खिलवाड़ करने से बेहतर है की किसी एक्सपर्ट से सलाह ले, और एक्सपर्ट सलाह के लिए निशुल्क नम्बर है 9205505259

Wednesday, 29 August 2018

S.R.D.A.V पुपरी में कैरियर मार्गदर्शन कार्यशाला का आयोजन किया गया

पुपरी : शहर के सीताराम डी० ए० वी० पब्लिक स्कूल में सोमवार को   डिस्कवर मल्टीप्ल टैलेंट के संस्थापक श्री आनन्द मोहन भारद्वाज   द्वारा एक कार्यशाला का आयोजन किया गया,जिसमे बच्चो को ये  बताया की कैसे वो अपनी छुपी हुई प्रतिभा का सही जगह एवं पूरा पूरा इस्तेमाल करके अपने कम समय में अधिक सफलता प्राप्त कर सकते है I  उन्होंने ने आगे कहा की आज सक्सेस तो  सभी चाहते हैं, लेकिन यह सबको मिलती कहां है? और मिले भी तो कैसे ?? जब लोग  खुद उलटी दिशा में चल रहे है I लोग बस किसी तरह से सफल होना चाहते है , और उनकी  सफलता की परिभाषा है उच्च शिक्षा के बाद आच्छी सी नौकरी और मोटी सैलरी... कई बार तो यह अच्छी एजुकेशन और पर्याप्त मेहनत के बाद भी नहीं मिलती। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि लोग अपने लिए गलत फील्ड डिसाइड कर लेते हैं। जब तक उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है, तब तक काफी देर हो जाती है और वे अपने कलीग्स से करियर की रेस में पीछे हो जाते हैं। इस सिचुएशन से बचने के लिए अपना गोल डिसाइड करने से लेकर सक्सेस मिलने तक हर कदम पर अपनी इंटेलिजेंस को यूज करें। अगर किसी भी कोर्स में नामांक लेने से पूर्व  बच्चे अपनी दिमागी  क्षमता से अवगत हो जाए तो वो कम  से कम समय में अधिक सफलता प्राप्त कर सकता है I अगर किसी बच्चे की रूचि है की  नए जगह जाना , नए लोगो से मिलना और उनसे बात करना, तो ऐसे में उस बच्चे के किसी ऐसे क्षेत्र का चुनाव करना चाहिए जिसमे काम करते हुए वो अपनी रूचि को बरकरार रख सके, वो अपनी आदतों के अनुसार अपने नौकरी का आनंद ले सके I अब देश में एक ऐसी तकनीक आ गयी है जिससे हमे बहुत छोटी उम्र में ये पता चल जाता है की हमारी क्षमता और प्रतिभा किस क्षेत्र में प्रबल है, हम उसी क्षेत्र की तैयारी करे,जिस क्षेत्र में हम जन्मजात रुप से मजबूत है I इस तकनीक का नाम है DMIT, जो की हमारी छुपी हुई क्षमताओ को उजागर करता है I छात्र-छात्राओं को हताशा अथवा निराशा का शिकार होने से बचाने के लिए  सर्वप्रथम छात्र-छात्राओं से यह पता किया जाता है कि किस तरह के विषय में उनकी रूचि हैतदनुसार ही उक्त क्षेत्र में उपलब्ध अवसरों से उसे वाकिफ कराया जाता है ताकि बगैर किसी दबाव के कैरियर के चयन की स्वतंत्रता में स्वविवेक के भी पर्याप्त इस्तेमाल का मौका उन्हें मिल सके। कभी-कभी तो ऐसा होता है कि मां-बाप अपने बेटे के आई.ए.एस. बनने का ख्वाब देखते है और उसी अनुसार उसकी शिक्षा पर भी बल देते है पर वह एक बिजनेंसमैन बनकर रह जाता है। कैरियर के चयन मे स्वतंत्रता न देने का ही यह नतीजा है कि उहापोह का शिकार छात्र कभी-कभार न घर का रह जाता है और न घाट का।
  D.M.I.T  द्वारा छात्र-छात्राओं की अभिरूचि जान लेने पर उन्हें स्वयं कैरियर प्लान’ बनाने के लिए प्रेरित किया जाता है। ऐसा देखा गया है कि रूचि के किसी भी क्षेत्र विशेष में कैरियर बनाने की तमन्ना के विभिन्न रास्ते दिखा देने भर से ही छात्र-छात्राओं में उसे पूरा करने की इच्छा भी प्रबल होने लगती है। उनमें अनिर्णय जैसी स्थिति हर्गिज नहीं रहती तथा वे कैरियर विशेष के विभिन्न पहलुओं व विभिन्न रास्तों से परिचित होकर फैसला करने की स्थिति में होते हैं। अब और कंफ्यूज  रहने की जरुरत नही है आज ही संपर्क करे हम आपको आपके जन्मजात प्रतिभा के आधार पर पर आपको  करियर विकल्प देंगे जिसमें आप शीर्ष तक पहुँच सके ।  हम छात्र-छात्राओं को शिक्षा व कैरियर में उनकी अभिरूचि ही नही बल्कि उनके जन्मजात प्रतिभा व क्षमता के अनुसार यह जानकारी देते है कि वे अपने देश में उपलब्ध व्यावसायिक अवसरों से किस तरह फायदा लेकर अपना भविष्य बना सकते हैं I कैरियर के चुनाव मे उधेड़बुन की स्थिति नहीं होनी चाहिए। फैसला बिल्कुल अपने लक्ष्य को केन्द्र में लेकर होना चाहिए। यदि आई.ए.एस. बनना है तो अपको किस रूचि के विषय को अपना कर आसानी से कामयाबी हासिल की जा सकती हैइसका चयन भी सर्वप्रथम अत्यावश्यक है।
सीताराम डी० ए० वी० पब्लिक स्कूल में बच्चो को DMIT की विशेषताओ से अवगत कराते हुए 

बच्चो ने सीखा लक्ष्य को प्राप्त करना

मुजफ्फरपुर : शहर के खबरा स्थित रेजोनेंस इंटरनेशनल स्कूल में डिस्कवर मल्टीप्ल टैलेंट के संस्थापक श्री आनन्द मोहन भारद्वाज ने बच्चो को अपनी छुपी हुई प्रतिभा के बारे में बताया आज हर मां-बाप शिक्षा को स्तरहीन बना रहे है, कुछ ही है जो बच्चों को रूचिनुसार शिक्षा दिला पाने में सफल हो पाते है I  अधिकतर माँ-बाप अपनी बुद्धि को ही आधार मान-कर बच्चों को अपने विवेक के अनुसार विषय दिलाकर उस पर पूर्ण ध्यान केन्द्रित करने का दबाब बनाते है I आज समाज में प्रतिष्ठित बनने की होड़ मची होने के कारण कोई भी अपने बच्चो को दबाव-मुक्त शिक्षा नही दे पा रहे है, और उसका परिणाम ???? बस छात्र भटकाव की ओर अग्रसर हो जाता है I दबाव में रहने वाला हर विद्यार्थी जैसे-तैसे डिग्री पास कर अपने योग्यतानुसार सही क्षेत्र में कार्य ना मिलने के कारण, वह तय नहीं कर पाता की उसका महत्त्व डिग्री के उपरांत परिवार एवं समाज में कैसे मिले?? दूसरी तरफ उम्र बढ़ते रहने के कारण उसे जो भी क्षेत्र मिलता है उसमें अपनी आजीविका शुरू कर अपने सही रूप को भूलकर बनावटी सामाजिक परिवेश को अपनाता है | आज ९०% छात्रों ने अपना जीवन इसी तरह किसी न किसी अनचाहे क्षेत्र में सिर्फ जीविका के आधार पर चुना है I ९० से १००% अंक लाने वाले छात्र भी अपने अनुसार जीवन नही बना पाते है, तथा उनका आई.क्यू बढ़िया होने के बाबजूद भी वो अपने शिक्षा को वास्तविक स्वरुप नही दे पाते है I अतः अब हमे छात्रों के मानसिक क्षमता पर आधारित शिक्षा को ही महत्त्व देना चाहिए I जानवरों की तरह बच्चों के पीछे पड़ने से शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है| इसलिए शिक्षा का स्वरुप बच्चो के दिमागी क्षमाताओ के अनुसार होना चाहिए ताकि वे स्वतंत्र रूप से अपनी गतिविधियों को अपने सही दिशा की ओर अधिक से अधिक बेहतर बनाने की कोशिश कर सकें| शिक्षा प्राप्त करने पर सुविधा प्राप्त होती है तथा में प्रसन्नचित्त होने के कारण जो भी शिक्षा ग्रहण करता है, वह उसके भावी जीवन को प्रसन्नचित्त रखकर जीने का अधिकार देती है| इस तरह विद्यार्थी में किसी प्रकार का तनाव नहीं रहता तथा छात्र एवं पालको के मध्य सामंजस्य होने के कारण शिक्षा का भावी रूप दिखाई देने लगता है I
उन्होंने आगे बताया की  शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जो हमारे जीवन को एक नयी विचारधारा, नया सवेरा देता है, ये हमे एक परिपक्व समाज और स्वर्णिम राष्ट्र बनाने में मदद करता है । यदि शिक्षा के उद्देश्य सही दिशा मे हों तो ये इन्सान को नये नये प्रयोग करने के लिये उत्साहित करते हैं । शिक्षा और संस्कार साथ साथ चलते हैं, या कहा जाये तो एक दूसरे के पूरक हैं । शिक्षा हमें संस्कारों को समझने और बदलती सामाजिक परिस्थियों के अनुरूप उनका अनुसरण करने की समझ देता है । आज शिक्षा जिस मुकाम पर पहुँच चुकी है वहाँ उसमें परिवर्तन की गुंन्जा‌इश है, आज हमें मिल बैठकर सोचना चाहिये, कि यदि शिक्षा हमारे उद्देश्यों को पूरा नही करती तो ऐसी शिक्षा का को‌ई मतलब नहीं है । इसलिए हमे ये समझना होगा की हम क्या पढ़ रहे है?, और क्यों पढ़ रहे है ? इस पढाई को हम अपने व्यावसायिक जीवन में किस तरह इस्तेमाल कर सकते है I आज देश में एक ऐसी तकनीक आ गयी है जिससे बच्चो को बहुत छोटी उम्र में ये बताया जा सकता है वो आगे चल कर किस क्षेत्र में सबसे अच्छा कर सकता है I इस टेस्ट का नाम है DMIT, इस टेस्ट की मदद से छुपी हुई प्रतिभा को उजागर करके बच्चो को उनके रूचि के अनुसार करियर के विकल्प दिये जा सकते है I

Resonance International School में बच्चो को DMIT से अवगत कराते हुए 

Thursday, 2 August 2018

प्रेरणा v/s अनुशासन - राजेश अग्रवाल

लाइफ कोच  श्री  राजेश अग्रवाल जी 

प्रेरणा v / s अनुशासन : सफलता के क्षेत्र में किये गये  विभिन्न शोधों ने ये दिखाया है कि जो व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में एक बड़ी ऊंचाई  को प्राप्त करते हैं, वह केवल अपनी प्रेरणा से अनुशासन का शिष्य रहा है। हालांकि यह बिल्कुल सच है कि प्रेरणा हर किसी के लिए आवश्यक है, यह भी सच है कि सफल होने में अनुशासन “प्रेरणा” से  बड़ी भूमिका निभाता है। प्रेरणा कई बार  अल्पकालिक होता है I  किसी भी प्रेरक प्रसंग को सुनकर कोई  व्यक्ति प्रेरित तो हो सकता है, लेकिन अपनी प्रेरणा को  बनाये रखने के लिए, उसको अनुशासन का छात्र होना चाहिए। प्रेरित व्यक्ति एक या दो दिनों के लिए कार्रवाई में देरी कर सकता है, लेकिन अनुशासित व्यक्ति जो मुसलाधार बारिस, तपती धूप और यहां तक ​​कि  कंपकपाती  ठंड में भी अपनी दैनिक कार्रवाई में देरी नहीं करता है। अनुशासित व्यक्ति कभी भी कार्रवाई में देरी नही करता या उसे टालता नही है ।  किसी भी व्यक्ति की अन्य कोई भी कौशल, रणनीति, टिप्स या तकनीकें तभी आपके काम आयेगी जब आप अनुशासित होंगे I हम में से बहुत से  लोग जो कई बार 1 जनवरी या नए साल पर ये  प्रतिज्ञा लेते हैं, की अब  अपनि आदतों में एक बदलाव लायंगे, लेकिन वे अनुशासन की कमी के कारण जल्दी  ही छोड़ देते हैं । इसलिए दोस्तों, अब हमे खुद के बारे में यह जांचने की जरुरत है कि हम केवल प्रेरित हैं, या हम अपने प्रत्येक गतिविधि में अनुशासित है I अगर हम सिर्फ प्रेरणात्मक बाते सुनते है, और उस अनुशासित तरीके से कारवाई नही करते है तो हम जभी सफल नही हो पाएंगे I एक सर्वेक्षण के अनुसार  प्रेरणात्मक सभा में शामिल होने वाले लोगो में से केवल 3% लोग अपने निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करते हैं, क्योंकि वे अत्यधिक अनुशासित हैं। - राजेश अग्रवाल

Sunday, 20 May 2018

अगर आप सचेत माता-पिता है तो इस गर्मी छुट्टी अपने बच्चो को दादा-दादी से मिलवाने जरुर ले जाए

आजकल के आधुनिक माता-पिता को लगता है की उनका बच्चा कोई कंप्यूटर है, जो मन चाहे सोफ्टवेयर इंस्टाल कर सकते है , और वो सब कुछ स्कूल/कोचिंग के भरोसे छोड़ देते है, और नतीजा क्या निकलता है ?? उनका बच्चा बर्बाद हो चूका होता है ..पहले अक्सर सुनने को मिलता था-इसे तो दादा-दादी के लाड़-प्यार ने बिगाड़ कर रखा है लेकिन आज यह उलाहने कहीं खो गए हैं। ‘हम दो हमारे दो’ के इस दौर में परिवार की व्याख्या से बुुजुर्ग गायब हो चुके हैं। एक समय था जब बचपन किलकारियां भरता, आजाद और उन्मुक्त सा इधर-उधर उछलता नजर आता था। बच्चों की इसी हंसी पर बड़े बुजुर्ग कुछ भी कुर्बान करने को हमेशा तैयार रहते थे। वे अपने पोते-पोतियों के पहरेदार बन जाते थे जिनके संरक्षण में मासूम बचपन खिलखिलाता था। परिवार में बड़े हों तो बच्चे उनसे अपनी समस्याएं और विचार बांट सकते हैं। यदि परिवार एकाकी हो तो बच्चे बाहर वालों के साथ आसानी से घुलमिल नहीं पाते। पेरैंट्स अगर वर्किंग हैं तो अकेला बच्चा क्या करे। वास्तव में दादा-दादी या नाना-नानी एक सलाहकार, दोस्त और एक मददगार की भूमिका निभाते हैं।

बड़े-बुजुर्गो के सानिध्य में रहने के फायदे-:
बच्चे को दादा-दादी से कहानियां सुन कर अच्छे संस्कार मिलते हैं। बच्चों में बड़ों का आदर करने, मिलजुल कर रहने और मिल बांट कर खाने की आदतें विकसित होती हैं। ये सभी बातें संयुक्त परिवार में रहने पर ही संभव हैं।
किसी भी तरह की तनाव की स्थिति या समस्या होने पर बड़े बुजुर्गों की मौजूदगी और उनका अनुभव एक परामर्शदाता का काम करता है।
संयुक्त परिवार में बच्चे अनुशासन और संस्कार सीखते हैं। जब आपको बच्चे अपने माता-पिता का सम्मान करते देखते हैं तो वे भी यह सब अपने जीवन में अपनाने को तत्पर रहते हैं।
बड़े-बुजुर्गो के साथ नही रहने के नुक्सान-:
बच्चे गंभीर प्रकृति के हो जाते हैं क्योंकि उनसे बातें करने वाला और उनकी बातें सुनने वाला कोई नहीं होता।
रिश्ते और परिवार क्या होता है एक-दूसरे के साथ रहना क्या होता है, अपनों का प्यार क्या होता है आदि कुछ ऐसी कई बातें हैं जिन्हें बड़ों के सानिध्य के बिना बच्चे जान ही नहीं सकते।
एकल परिवार में बच्चे को कोई छोटी-मोटी तकलीफ हुई नहीं कि पेरैंट्स उसे डाक्टर के पास लेकर पहुंच जाते हैं। जहां घर में दादा-दादी हों वे बच्चे के माता-पिता को हौसला तो देते हैं ही साथ में घरेलू नुस्खों से बच्चे की छोटी-मोटी बीमारियों को कुछ समय के लिए छूमंतर कर देते हैं।
अगर पेरैंस्ट वर्किंग हैं तो उन्हें बच्चों को कहां छोड़ें जैसी समस्या का सामना करना पड़ता है। उन्हें बच्चों के लिए आया रखनी पड़ती है या क्रच में छोडऩा पड़ता है। घर में बड़े-बुजुर्ग हैं तो बच्चों को लेकर ऐसी कोई टैंशन नहीं रहती।
एकल परिवारों के बच्चे अकेले रहने में खुश रहते हैं और दूसरे के साथ एडजस्ट होना उन्हें मुश्किल लगता है। वे भीड़भाड़ वाली जगह पर भी स्वयं को असहज महसूस करते हैं।
बच्चे के उत्सुक मन में हर रोज हजारों प्रश्र उठते हैं जिनके वह उत्तर जानना चाहता है। अगर परिवार में माता-पिता के अलावा उसके दादा-दादी हों तो वह उनके साथ अपनी बातें शेयर कर सकता है जिससे उसके विचार और अधिक विकसित होते चले जाते हैं।
अगर बात की जाए दादा-दादी के साथ बच्चे के रहने की और महंगे चाइल्ड केयर सैंटर में बच्चे के एडमिशन की तो एक सर्वे के अनुसार दादा-दादी ज्यादा बेहतर हैं। जो बच्चे दादा-दादी के संरक्षण में पले थे वह केयर सैंटर में पलने वाले बच्चों की तुलना में अधिक विकसित पाए गए।
एक सर्वे के मुताबिक जिन बच्चो को बचपन में दादा-दादी या नाना-नानी का सानिध्य नही मिल पाता, ऐसे बच्चे संस्कारहिन् या कहे तो उदंड बन जाते है, जो की आगे चलकर ना सिर्फ परिवार के लिए अपितु समाज और राष्ट्र के लिए भी घातक सिद्ध होते है I
आज अगर आप गौर करे तो शहर की अपेक्षा गाँ
व में पले-बढे बच्चे ज्यादा संस्कारी और प्रतिभावान होते है, इसलिए भाग-दौर भरी इस जिन्दगी में थोडा सा समय निकालकर अपने बच्चो को गाँव जरुर घुमाए, उन्हें बड़े बुजुर्गो से मिलने का मौक़ा दे, जो शिक्षा बच्चे को बुजुर्गो से प्राप्त होती है वो दुनिया के किसी विश्वविद्यालय में नही मिलता I आज आप ये सुनिश्चित करे की इस गर्मी छुट्टी आप अपने बच्चो को गाँव ले जाकर उनको गाँव-समाज से जुड़ना सिखायेंगे, उनको दादा-दादी से मिलने का मौका देंगे .
दादा-दादी से बच्चो को संस्कार मिलता है वो दुनिया के किसी स्कूल से नही मिल सकता 

Tuesday, 24 April 2018

बच्चो को मानसिक तनाव से बचाने के लिए ये जरुर बताया जाना चाहिए की वो क्या पढ़ रहा है, और क्यों पढ़ रहा है...

बच्चे को तनाव से बचाने में DMIT टेस्ट मदद करता है 
मनुष्य स्वयं में एक बेशकीमती संपदा है, एक ऐसा अमूल्य संसाधन है जिसको दुनिया के किसी भी बेशकीमती चीज से बराबरी नही कर सकते, बस जरूरत इस बात की है कि उस(मानव) अमूल्य संपदा की परवरिश सही दिशा में हो, गतिशील एवं संवेदनशील हो और साथ ही परवरिस के दौरान ख़ास सावधानी बरती जाये। व्यक्ति जन्म लेता है तो वह एक खाली डब्बा मात्र है, हम उसमे जो भरेंगे,उसी अनुसार वो व्यक्ति बेशकीमती/कबाड़ा होगा, अब हमे ये फैसला करना है की हम अपने बच्चे को बेशकीमती बनाना चाहते है या कबाड़ा?
हर इंसान का अपना एक विशिष्ट व्यक्तित्व होता है, जन्म से मृत्युपर्यन्त, जिन्दगी के हर मुकाम पर उसकी अपनी समस्याएं और जरूरतें होती हैं। विकास की इस पेचीदा और गतिशील प्रक्रिया में शिक्षा अपना उत्प्रेरक योगदान दे सकें, इसके लिए बहुत सावधानी से योजना बनाने और उस पर पूरी लगन के साथ अमल करने की आवश्यकता है। बच्चो को पढाई प्रारम्भ करने से पूर्व ये पता होना चाहिए की वो क्या पढ़ रहा है, और क्यों पढ़ रहा है? इस पढ़ाई का उपयोग वो जीवन के किस हिस्से में कर पायेगा I अगर आप अपने बच्चो को अच्छी नौकरी पाने के लिए मन लगाकर पढने को बोलते है, तो आप बच्चे के साथ अन्याय कर रहे है I जिस बच्चे को ये पता ही नही है की उसे किस क्षेत्र में नौकरी करनी है, तो फिर वो किस विषय में मन लगाकर पढ़े ??
अब हमारे सिलेबस में १०वी तक सभी विषये पढाई जाती है, तो ऐसे में बच्चे किस विषय पर अत्यधिक ध्यान दे ?? आगर आप कहेंगे की हर विषय पर बराबर ध्यान दे तो आपकी ये गलती आपके बच्चे के उज्ज्वल भविष्य को बर्बाद कर देगा I इसलिए अगर आप एक सचेत माता-पिता है तो आज ही अपने बच्चे के उस विशिष्ट क्षेत्र की पहचान करे, जिसमे में उसे अत्यधिक ध्यान देना है I अपने बच्चे की छुपी हुई प्रतिभा को वैज्ञानिक पद्धति से उजागर करने के लिए अभी संपर्क करे 9471818604, 9711139259

Saturday, 14 April 2018

मिथिला का एक ऐसा त्यौहार जो ग्लोबल वार्मिंग को कम करता है ..

आनंद
जुड़ शीतल के दौरान कीचड़ से खेलते लोग 
आज पूरा विश्व ग्लोबल वार्मिंग के खतरों को झेल रहा  है, आधुनिक विज्ञान ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए कोई स्थायी विकल्प खोजने में विफल रहा है, इसका मुख्य कारण ये है की ग्लोबल वार्मिंग सिर्फ और सिर्फ प्रकृति के मदद से ही कम किया जा सकता है, और प्रकृति से मदद लेने के लिए हमे प्रकृति की मदद करनी होगी, और वो हम कर सकते है, पेड़ लगाकर, प्रदुषण कम करके, अपने आस पास साफ़ सफाई रखते हुए हम प्रकृति को हरा भरा रखने में अपना योगदान दे सकते है I पता नही आप लोगों में से कितनों को इस पर्व के बारे में मालूम है । निश्चित ही इस आधुनिक युग मे बहुतों को नही पता होगा । आइये थोड़ा डिटेल बताते है आपको । हमारे यहाँ आज  ग्लोबल वार्मिंग को कम करने वाला एक त्यौहार जुड़ शीतल(Stay Cold) मनाया जा रहा है, इसे सतुवाइन भी कहा जाता है, सतुवाइन सत्तू(जो की चने का बनता है, इसका सेवन करना सतुवाइन कहा जाता है), और स्वास्थ्य के लिए बहुत ही गुणकारी है I इस त्यौहार का वैज्ञानिक महत्व भी है. इस मौके पर चने और जौ की सत्तू खाने की परंपरा है,  क्योंकि भीषण गर्मी की शुरुवात इसी महीने से होती है, और इस मौसम में लोगों का उदर व्याधि विशेषकर वायु पित्त होने की संभावना रहती हैI वैज्ञानिक दृष्टि से जौ एवं चना को शीतल एवं वायुरोधक माना गया हैI इसलिए बैशाख मास के प्रथम दिन से ही इसका सेवन करते हैं। मिथिला में अलग-अलग रूपों में प्रकृति की पूजा की जाती है़,जुड़-शीतल भी मिथिला की संस्कृति से जुड़ा एक अद्भुत पर्व है़ जो विलुप्त होने के कगार पर है़ गाँव में इसकी झलक मिल भी जाती है, परंतु शहरों में जुड़ शीतल का पर्व विलुप्त प्राय हो चुका है़ गाँव से सम्बन्ध रखने वाले घरों में ही इस पर्व को विधिवत मनाया जाता है। जुड़ शीतल पर्व मनाने के पीछे इसकी उपयोगिता और सार्थकता है़। दो दिवसीय इस पर्व के पहले दिन सतुआइन और दूसरे दिन धुरखेल(कीचड़ और मिट्टी से खेलना) होता है़ सतुआइन के दिन सत्तू और बेसन से बने व्यंजनों को खाने कि परंपरा है़ गरमी के मौसम में सत्तू और बेसन से बने व्यंजन के खराब होने की आशंका कम होती है़ I इसलिए सतुआइन के दिन बना खाना ही लोग अगले दिन खाते हैं, इस दिन अगले सुबह घर के बड़े छोटे के सिर पर पानी डालते हैं, माना जाता है कि इससे पूरे गरमी के मौसम में सिर ठंडा रहेगा़ पेड़ - पौधे की जड़ों में भी पानी डालने की परंपरा है. वही धुरखेल के दिन जहां पानी जमा होता है, परंपरानुसार इन स्थानों की सफाई के दौरान विनोदपूर्ण क्रिया की जाती है़ I मिथिला की प्रकृतिपूजक संस्कृति का अद्भुत पर्व है जुड़-शीतल। ग्लोवल वार्मिंग के इस दौर मे इस पर्व की उपयोगिता और सार्थकता बढ़ गई है। हम अर्थ आवर के नाम पर उन जगहों की बत्ती भी बंद कर देते हैं, जहां बिजली कभी-कभार आती है। क्या हमने कभी रसोई से निकलनेवाली ऊर्जा पर गौर किया है। क्या हमने कभी रसोई को आराम देने की कोशिश की है। नहीं... लेकिन मिथिला में एक वर्षों पुरनी परंपरा हमें ऐसा करने की प्रेरणा देती है। आज बहुत लोग इस पर्व के संबंध में नहीं जानते, मिथिला में भी यह पर्व सिमटता जा रहा है। अखबार और पत्रिका में भी इस पर्व के संबंध में कोई जानकारी नहीं है। उनकी भी मजबूरी है। न कोई बड़ा नेता इस पर्व को मनाता है और न ही कोई कलाकार या खिलाड़ी। ऐसे में इस पर्व के बारे में कहीं न जगह है और न ही कहीं समय। लेकिन इस पर्व की रोचकता और वैज्ञानिकता इसे मरने से बचा रखी है। अगर इस पर्व को छठ के समान प्रचारित किया जाए, तो इस अद्भूत पर्व पर पूरा विश्व फिदा हो जाएगा। मूलरूप से यह पर्व सूचिता अर्थात साफ-सफाई से संबंध रखता है। दो दिवसीय इस पर्व का पहला दिन सतुआइन और दूसरा दिन धुरखेल कहा जाता है। इस मौसम में सत्तू का भी अपना विशेष महत्व है । आम के पेड़ पर लगने वाला मंजर से टिकोला बनता है फिर उसी टिकोला से आम । इसी टिकोला और सत्तू का पहला भोग भगवान को चढ़ाने की सदियों पुरानी परंपरा है ।
कल जुड़शीतल पर्व है यानि अगले दिन लोग कीचड़ मिट्टी से भी खेलने की परंपरा है जैसे होली में रंगों से खेलते है । कल के दिन सुबह सुबह घर के बड़े बुजुर्ग परिवार के अन्य सदस्यों के ऊपर जल/पानी का हल्का छींटा मारते हैं । भगवान पर चढ़ा हुआ जल से उच्छरँगा करने को शुद्धता और आशीर्वाद माना जाता है । हलांकि  कीचड़ कादो से खेलने की यह परंपरा विलुप्त होता जा रहा है । बहुत सीमित स्तर पर सिर्फ गाँव देहात में बचा रह गया है ।गर्मी का मौसम आ चुका है । आम फल का सीज़न शुरू हो रहा है ।

एक जमाना था जब जुड़ शीतल नाम से प्रसिद्ध मिथिला के ख्याति प्राप्त पर्व धार्मिक अनुष्ठान के साथ साथ कई को समेटने में सक्षम था परंतु आज यह पर्व खुद अपनी अस्तित्व को भी सहेजने में असक्षम प्रतीत होता जा रहा है. कई कारण से यहां के लोग इस पर्व को अन्य परंपराओं की तरह भुलते जा रहे हैं। पहले जहां मिथिला के गांवों में जुड़ शीतल मनाने की कवायद 10-15 दिन पूर्व से ही आरंभ हो जाती थी।
खासकर नौजवान एवं बच्चे बांस की हस्तनिर्मित पिचकारी बनाने व उस पिचकारी को लेकर तालाबों में खेलने की तैयारी में जुट जाते थे। गांव के नौजवान एवं बच्चे दो टोली में बंट कर तालाबों के पानी में पिचकारी से एक दूसरे के ऊपर पानी उड़ेलने का खेल खेलते थे तो बड़े बुजुर्ग अपने अपने घरों के आसपास की कीचड़ की सफाई व तालाबों एवं कुआं की उड़ाही का कार्य भी खेल- खेल में संपादित करते थे। कीचड़ एवं गोबर एक दूसरे पर फेंकने की प्रथा जुड़ शीतल वर्षो से चलती आयी है। इस खेल में गांवों की महिलाएं भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती थी। यह खेल सुबह के पहले पहर में खेला जाता था। माना जाता है कि इसका प्राकृतिक चिकित्सा के दृष्टिकोण से यह महत्वपूर्ण माना जाता है। जुड़ शीतल पर्व के दिन अहले सुबह घर की श्रेष्ठ महिला द्वारा सभी सदस्यों के माथे को पानी से शिक्त किया जाता है. जिसे जुड़ाया जाना कहा जाता है। कहा जाता है कि परिवार के बड़ों के आशीर्वाद से लोग पूरे साल खुशहाली की जिंदगी जीते हैं। विभिन्न ग्रंथों में इसकी चर्चा है. वहीं इस परंपरा को निभाये जाने के बाद हर कोई तमाम पेड़ पौधे की सिंचाई में जुट जाते हैं।

माना जाता है कि गरमी की बढ़ती तपिश से बचाने के लिए हर कोई संकल्पित है। फिर लोग नहा धोकर मिथिला की अति विशिष्ट व्यंजन कढ़ी और बड़ी के साथ चावल को भोजन के रूप में ग्रहण करते थे। इसके उपरांत दो बजते बजते लोग झुंड में लाठी, भाला, बरछी, फरसा आदि से लैश होकर वन में शिकार खेलने निकल जाते थे। शिकार में शाही, खरहा सहित अन्य खाद्य पशु पक्षियों की शिकार की जाती थी। यदि शिकार नहीं मिला या लोग शिकार करने में असफल रहे तो अशुभ माना जाता था. कहीं कहीं इस विशेष पर्व की विशिष्टता को भुनाने के उद्देश्य से इस दिन दंगल एवं कुश्ती की प्रतियोगिता भी आयोजित की जाती थी।शाम होते ही लोग भांग एवं चीनी की शरबत पीकर मदमस्त हो जाते थे। इसके बाद गांवों में लोग भजन कीर्तन का आयोजन करते थे। परंतु अफसोस की आज कल के युवक इसे महज एक इतिहास की कहानी ही समझते हैं क्योंकि आज जुड़ शीतल पर्व की लोकप्रियता पूर्णत: धूमिल हो गयी है। या यूं कहें कि युवा वर्गो में इस पर्व को लेकर उत्साह देखा ही नहीं जाता है।

इस प्रकार मनाये जूड-शीतल 
14 को सत्तू और बेसन का पकवान बनाये जिसे 15 को भी खायें 15 को दिन में रसोई की सफाई करें, चूल्हे न जलाये 15 को सूर्योदय से पूर्व बच्चों के सिर पर पानी डाले 15 को कम से कम एक पेड में पानी डाले 15 को पानी संचयवाले स्थान की सामूहिक सफाई करे15 को तुलसी की रक्षा के लिए उसके ऊपर जलपात्र बांधे15 को अन्न दान करें, जल पात्र भेंट करें