Saturday, 16 March 2019

ये दुनिया असफल लोगो से ही चलती है....

परीक्षाओं का दौर चल रहा है. बच्चों के साथ-साथ बड़े भी अपने बच्चों के भविष्य के लिए चिंतित होंगे. इस दौरान बच्चों पर अपने पेरेंट्स की आकांक्षाओं को पूरा करने का दबाव होता है. परिवार के लोग अपने सपने, जो वो पूरा नहीं कर पाते, उन्हें अपने बच्चों से पूरा कराना चाहते हैं. उन्हें तरह-तरह के ताने मारते हैं. बच्चे अपनों के सपनों को पूरा करने के लिए बहुत मेहनत करते हैं. इनमें से कुछ सफल होते हैं, कुछ असफल, कुछ अपने तय लक्ष्य को प्राप्त कर पाते हैं, कुछ नहीं. सफल छात्र जीवन में आगे बढ़ जाते हैं और अधिकतर असफल छात्र हार न मानते हुए फिर मेहनत करते हैं और अंत में सफल होते हैं.
असफलता_के_डर के कारण चुनते हैं गलत रास्ता
इनमें कई छात्र ऐसे भी होते हैं, जो खराब रिजल्ट और असफलता के डर के कारण गलत रास्ता चुनने की सोचते हैं या चुन लेते हैं. वो आत्महत्या जैसा कदम तक उठा लेते हैं. इस दौरान वो भूल जाते हैं कि उनके अपने उनके बिना कैसे रहेंगे. उनपर क्या बीतेगी. सपनों की दुनिया में जाकर सपनों को पूरा नहीं किया जा सकता. किसी के रहने न रहने से ज्यादा कुछ नहीं बदलता.
बच्चों को यह सोचना चाहिये कि आज देश और दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी अलग पहचान रखने वाले लोग किसी जमाने में बच्चे थे. उनमें से कई बचपन में कमजोर और असफल थे, लेकिन आज ताकतवर और सफल हैं. दुनिया उन लोगों से भरी पड़ी है, जो शुरुआत में कई बार असफल और निराश हुये, लेकिन हर न मानने के कारण आज अधिकतर युवा उन जैसा बनना चाहते हैं. #जे के रोलिंग
हैरी पॉटर की लेखिका जेके रोलिंग की गिनती आज विश्व के सबसे सफल लोगों में होती है. उनकी किताब और उसपर बनीं फिल्मों ने इतिहास में अगल ही मुकाम हासिल किया है. इस महान सफलता के पहले वो कई बार असफल हुईं. वो ऑक्सफोर्ड में पढ़ना चाहती थीं, इसके लिए 1982 में उन्होंने प्रवेश परीक्षा भी दी, लेकिन उन्हें प्रवेश नहीं मिल सका. उनकी शादी भी ज्यादा दिन नहीं चली. वो और उनके जल्द ही एक-दूसरे से अलग हो गये. रोलिंग ने सिंगल मदर के तौर पर अपनी बेटी को पाला. कई प्रकाशकों ने हैरी पॉटर सीरीज के पहले उपन्यास को छापने से भी मना कर दिया था. उनके मन में कई बार आत्महत्या का ख्याल भी आया, लेकिन उन्होंने इसे मन पर हावी नहीं होने दिया. तमाम विपरीत परिस्थितियों से मुकाबला करते हुए वो आगें बढ़ीं और आज उस जगह हैं, जहां हर कोई पहुंचना चाहता है. #बिल गेट्स
विश्व में हर एक के हाथों में कम्प्यूटर पहुंचाकर क्रांति लाने वाले बिल गेट्स माइक्रोसॉफ्ट कंपनी के मालिक और दुनिया के सबसे अमीर इंसानों में एक हैं. वो एक कॉलेज ड्रॉप ऑउट हैं और कई बार असफल भी हुये, लेकिन आज दुनिया के टॉपर उनकी कंपनी में काम करना चाहते हैं. #माइकल डेल
डेल टेक्नोलॉजी के अध्यक्ष माइकल डेल ने 1983 में टेक्सास विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, लेकिन पहले ही साल कॉलेज छोड़ दिया. डेल के माता-पिता चाहते थे कि वे डॉक्टर बनें, पर उनकी मंशा कुछ और थी. आज डेल कंपनी दुनिया की बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों में गिनी जाती है. #लैरी एलिसन
ओरेकल के संस्थापक लैरी एलिसन को उनकी मां ने चाचा-चाची को गोद दे दिया था. उनके दत्तक माता-पिता चाहते चाहते थे कि वे डॉक्टर बने. इसके लिए उन्होंने इलिनोइस और शिकागो विश्वविद्यालय में प्रवेश भी लिया, लेकिन वो डॉक्टरी के कठिन कोर्स को पूरा नहीं कर सके और कॉलेज छोड़ दिया.
इसके अलावा फेसबुक के को-फाउंडर मार्क जुकरबर्ग, एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स, फोर्ड मोटर के संस्थापक हेनरी फोर्ड, डिज्नी कंपनी के संस्थापक वाल्ट डिज्नी, महान वैज्ञानिक आइजेक न्यूटन, अल्बर्ट आइंस्टीन, थॉमस एडिसन, अमेरिका के राष्ट्रपति रहे अब्राहम लिंकन, अफ्रीका के राष्ट्रपति रहे नेल्सन मंडेला सहित दुनिया में ऐसे कई सफल और महान लोग हैं, जिनकी उपेक्षा की गई, स्कूल से निकाल दिया गया, किसी कारण कॉलेज छोड़ना पड़ा, पढ़ाई में कमजोर रहे, लेकिन अंत में हार न मानते हुए सफल हुए हैं. हो सकता है सफल लोगों में से कई अपनी शुरुआत से ही पढ़ने-लिखने में अव्वल हों, लेकिन अपने-अपने क्षेत्रों में सफलता के शिखर पर बैठे इन लोगों में कई ऐसे भी हैं, जो एक सामान्य छात्र थे. इनमें से कई स्कूल और कॉलेजों में फेल भी हुए हैं. जीवन के कई क्षेत्रों में असफल हुए हैं. दुनिया ऐसे लोगों से भरी पड़ी है, जो एक क्षेत्र में असफल हो गये हैं, लेकिन दूसरे क्षेत्रों में उन्होंने बहुत नाम कमाया है. उन्होंने अपनी विफलताओं को अपनी कमजोरी मानकर गलत कदम उठाने की जगह विफलताओं से सीखकर आगे बढ़ने का रास्ता चुना और आज दुनिया उनके बताए रास्ते पर चल रही है.
परीक्षा में मिले नंबर सफलता-असफलता की निशानी नहीं होते. ऐसा कोई तय नियम भी नहीं है कि जो टॉप करेगा या अच्छे नंबर लाएगा, वही आगे चलकर नाम कमाएगा. दुनिया का हर इंसान अपने आप में अलग है. हर एक की अपनी अच्छाईयां और कमियां हैं. हो सकता है एक किसी विषय को कम समय में समझ ले और दूसरे को अधिक समय लगे. इसी तरह दूसरा किसी बात को कम समय में समझ ले और पहले को अधिक समय लगे. यह सब तो अपनी-अपनी समझ पर निर्भर करता है. यह सच है कि हमें अपने सपनों को पाने के लिए मेहनत करनी होगी, आगे बढ़ना होगा, लेकिन हम अपने सपनों को तभी साकार कर सकते हैं, जब हम इस दुनिया में रहेंगे और छोटी-छोटी असफलताओं से निराश होने की जगह उनसे सीखकर आगे बढ़ते चलेंगे.मेरे तरफ से उन सभी माता -पिता और बच्चो के लिए एक महत्वपूर्ण सुझाव यह कि कैरियर के चुनाव का सही वक्त दसवीं कक्षा ही है, क्योंकि यह एक ऐसा समय होता है जब छात्र-छात्राओं में सर्वाधिक अनिर्णय की स्थिति होती है पर साथ ही साथ उन्हें सबसे अधिक सही सुझाव और दिशा-निर्देश की भी आवश्यकता होती है। विषयों के चुनाव का यह सबसे सही वक्त होता है, पर्याप्त सोच-विचार कर अपनी रूचि के विषय का चयन उसमें कैरियर की संभावनाओं के मद्देनजर ही करना चाहिए। ऐसा नहीं कि आर्ट्स पढ़ने की इच्छा हो और साइंस में दाखिला लेने की मजबूरी, कॉमर्स में दिलचस्पी हो तथा इंजीनियरिंग कोर्स को अपनाने का दबाव, मेडिकल मे जाने की इच्छा हो, एम.बी.ए. मे दाखिला लेने की विवशता। इस तरह आधे-अधूरे मन से किये गये कैरियर के चुनाव में वांछित सफलता तो संदिग्ध रहती ही है, इच्छित नतीजे न मिलने से जीवन भर के लिए ही वह कोर्स अभिशाप बन जाता है। होना तो यह चाहिए कि आप जो भी कोर्स करने जा रहे हों, उसके बारे में अथवा उसकी संभावनाओं से आपको पूर्णतया वाकिफ होना चाहिए कि आखिर आप वह कोर्स किस लिये कर रहे हैं। कोर्स का अनायास चयन नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर न तो आप उस कोर्स के प्रति सीरियस हो सकेंगे और न ही अपने प्रति समुचित न्याय कर सकेंगे। आपको उक्त कोर्स में संतुष्टि भी नहीं मिलेगी, न पर्याप्त दिलचस्पी जगेगी और फिर नतीजा निराशा ही निराशा। 
इसलिए जीवन से खिलवाड़ करने से बेहतर है की किसी एक्सपर्ट से सलाह ले, और एक्सपर्ट के सलाह के लिए निशुल्क नम्बर है 9205505259


Friday, 15 March 2019

मैट्रिक परीक्षाके बाद अब लोगो को इसके परिणाम का इन्तजार है,मेरे तरफ से उन सभी माता -पिता और बच्चो के लिए एक महत्वपूर्ण सुझाव यह कि कैरियर के चुनाव का सही वक्त दसवीं कक्षा ही है,

मैट्रिक परीक्षाके बाद अब लोगो को इसके परिणाम का इन्तजार है,मेरे तरफ से उन सभी माता -पिता और बच्चो के लिए एक महत्वपूर्ण सुझाव यह कि कैरियर के चुनाव का सही वक्त दसवीं कक्षा ही है, क्योंकि यह एक ऐसा समय होता है जब छात्र-छात्राओं में सर्वाधिक अनिर्णय की स्थिति होती है पर साथ ही साथ उन्हें सबसे अधिक सही सुझाव और दिशा-निर्देश की भी आवश्यकता होती है। विषयों के चुनाव का यह सबसे सही वक्त होता है, पर्याप्त सोच-विचार कर अपनी रूचि के विषय का चयन उसमें कैरियर की संभावनाओं के मद्देनजर ही करना चाहिए। ऐसा नहीं कि आर्ट्स पढ़ने की इच्छा हो और साइंस में दाखिला लेने की मजबूरी, कॉमर्स में दिलचस्पी हो तथा इंजीनियरिंग कोर्स को अपनाने का दबाव, मेडिकल मे जाने की इच्छा हो, एम.बी.ए. मे दाखिला लेने की विवशता। इस तरह आधे-अधूरे मन से किये गये कैरियर के चुनाव में वांछित सफलता तो संदिग्ध रहती ही है, इच्छित नतीजे न मिलने से जीवन भर के लिए ही वह कोर्स अभिशाप बन जाता है। होना तो यह चाहिए कि आप जो भी कोर्स करने जा रहे हों, उसके बारे में अथवा उसकी संभावनाओं से आपको पूर्णतया वाकिफ होना चाहिए कि आखिर आप वह कोर्स किस लिये कर रहे हैं। कोर्स का अनायास चयन नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर न तो आप उस कोर्स के प्रति सीरियस हो सकेंगे और न ही अपने प्रति समुचित न्याय कर सकेंगे। आपको उक्त कोर्स में संतुष्टि भी नहीं मिलेगी, न पर्याप्त दिलचस्पी जगेगी और फिर नतीजा निराशा ही निराशा। 
इसलिए जीवन से खिलवाड़ करने से बेहतर है की किसी एक्सपर्ट से सलाह ले, और एक्सपर्ट सलाह के लिए निशुल्क नम्बर है 9205505259

Wednesday, 29 August 2018

S.R.D.A.V पुपरी में कैरियर मार्गदर्शन कार्यशाला का आयोजन किया गया

पुपरी : शहर के सीताराम डी० ए० वी० पब्लिक स्कूल में सोमवार को   डिस्कवर मल्टीप्ल टैलेंट के संस्थापक श्री आनन्द मोहन भारद्वाज   द्वारा एक कार्यशाला का आयोजन किया गया,जिसमे बच्चो को ये  बताया की कैसे वो अपनी छुपी हुई प्रतिभा का सही जगह एवं पूरा पूरा इस्तेमाल करके अपने कम समय में अधिक सफलता प्राप्त कर सकते है I  उन्होंने ने आगे कहा की आज सक्सेस तो  सभी चाहते हैं, लेकिन यह सबको मिलती कहां है? और मिले भी तो कैसे ?? जब लोग  खुद उलटी दिशा में चल रहे है I लोग बस किसी तरह से सफल होना चाहते है , और उनकी  सफलता की परिभाषा है उच्च शिक्षा के बाद आच्छी सी नौकरी और मोटी सैलरी... कई बार तो यह अच्छी एजुकेशन और पर्याप्त मेहनत के बाद भी नहीं मिलती। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि लोग अपने लिए गलत फील्ड डिसाइड कर लेते हैं। जब तक उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है, तब तक काफी देर हो जाती है और वे अपने कलीग्स से करियर की रेस में पीछे हो जाते हैं। इस सिचुएशन से बचने के लिए अपना गोल डिसाइड करने से लेकर सक्सेस मिलने तक हर कदम पर अपनी इंटेलिजेंस को यूज करें। अगर किसी भी कोर्स में नामांक लेने से पूर्व  बच्चे अपनी दिमागी  क्षमता से अवगत हो जाए तो वो कम  से कम समय में अधिक सफलता प्राप्त कर सकता है I अगर किसी बच्चे की रूचि है की  नए जगह जाना , नए लोगो से मिलना और उनसे बात करना, तो ऐसे में उस बच्चे के किसी ऐसे क्षेत्र का चुनाव करना चाहिए जिसमे काम करते हुए वो अपनी रूचि को बरकरार रख सके, वो अपनी आदतों के अनुसार अपने नौकरी का आनंद ले सके I अब देश में एक ऐसी तकनीक आ गयी है जिससे हमे बहुत छोटी उम्र में ये पता चल जाता है की हमारी क्षमता और प्रतिभा किस क्षेत्र में प्रबल है, हम उसी क्षेत्र की तैयारी करे,जिस क्षेत्र में हम जन्मजात रुप से मजबूत है I इस तकनीक का नाम है DMIT, जो की हमारी छुपी हुई क्षमताओ को उजागर करता है I छात्र-छात्राओं को हताशा अथवा निराशा का शिकार होने से बचाने के लिए  सर्वप्रथम छात्र-छात्राओं से यह पता किया जाता है कि किस तरह के विषय में उनकी रूचि हैतदनुसार ही उक्त क्षेत्र में उपलब्ध अवसरों से उसे वाकिफ कराया जाता है ताकि बगैर किसी दबाव के कैरियर के चयन की स्वतंत्रता में स्वविवेक के भी पर्याप्त इस्तेमाल का मौका उन्हें मिल सके। कभी-कभी तो ऐसा होता है कि मां-बाप अपने बेटे के आई.ए.एस. बनने का ख्वाब देखते है और उसी अनुसार उसकी शिक्षा पर भी बल देते है पर वह एक बिजनेंसमैन बनकर रह जाता है। कैरियर के चयन मे स्वतंत्रता न देने का ही यह नतीजा है कि उहापोह का शिकार छात्र कभी-कभार न घर का रह जाता है और न घाट का।
  D.M.I.T  द्वारा छात्र-छात्राओं की अभिरूचि जान लेने पर उन्हें स्वयं कैरियर प्लान’ बनाने के लिए प्रेरित किया जाता है। ऐसा देखा गया है कि रूचि के किसी भी क्षेत्र विशेष में कैरियर बनाने की तमन्ना के विभिन्न रास्ते दिखा देने भर से ही छात्र-छात्राओं में उसे पूरा करने की इच्छा भी प्रबल होने लगती है। उनमें अनिर्णय जैसी स्थिति हर्गिज नहीं रहती तथा वे कैरियर विशेष के विभिन्न पहलुओं व विभिन्न रास्तों से परिचित होकर फैसला करने की स्थिति में होते हैं। अब और कंफ्यूज  रहने की जरुरत नही है आज ही संपर्क करे हम आपको आपके जन्मजात प्रतिभा के आधार पर पर आपको  करियर विकल्प देंगे जिसमें आप शीर्ष तक पहुँच सके ।  हम छात्र-छात्राओं को शिक्षा व कैरियर में उनकी अभिरूचि ही नही बल्कि उनके जन्मजात प्रतिभा व क्षमता के अनुसार यह जानकारी देते है कि वे अपने देश में उपलब्ध व्यावसायिक अवसरों से किस तरह फायदा लेकर अपना भविष्य बना सकते हैं I कैरियर के चुनाव मे उधेड़बुन की स्थिति नहीं होनी चाहिए। फैसला बिल्कुल अपने लक्ष्य को केन्द्र में लेकर होना चाहिए। यदि आई.ए.एस. बनना है तो अपको किस रूचि के विषय को अपना कर आसानी से कामयाबी हासिल की जा सकती हैइसका चयन भी सर्वप्रथम अत्यावश्यक है।
सीताराम डी० ए० वी० पब्लिक स्कूल में बच्चो को DMIT की विशेषताओ से अवगत कराते हुए 

बच्चो ने सीखा लक्ष्य को प्राप्त करना

मुजफ्फरपुर : शहर के खबरा स्थित रेजोनेंस इंटरनेशनल स्कूल में डिस्कवर मल्टीप्ल टैलेंट के संस्थापक श्री आनन्द मोहन भारद्वाज ने बच्चो को अपनी छुपी हुई प्रतिभा के बारे में बताया आज हर मां-बाप शिक्षा को स्तरहीन बना रहे है, कुछ ही है जो बच्चों को रूचिनुसार शिक्षा दिला पाने में सफल हो पाते है I  अधिकतर माँ-बाप अपनी बुद्धि को ही आधार मान-कर बच्चों को अपने विवेक के अनुसार विषय दिलाकर उस पर पूर्ण ध्यान केन्द्रित करने का दबाब बनाते है I आज समाज में प्रतिष्ठित बनने की होड़ मची होने के कारण कोई भी अपने बच्चो को दबाव-मुक्त शिक्षा नही दे पा रहे है, और उसका परिणाम ???? बस छात्र भटकाव की ओर अग्रसर हो जाता है I दबाव में रहने वाला हर विद्यार्थी जैसे-तैसे डिग्री पास कर अपने योग्यतानुसार सही क्षेत्र में कार्य ना मिलने के कारण, वह तय नहीं कर पाता की उसका महत्त्व डिग्री के उपरांत परिवार एवं समाज में कैसे मिले?? दूसरी तरफ उम्र बढ़ते रहने के कारण उसे जो भी क्षेत्र मिलता है उसमें अपनी आजीविका शुरू कर अपने सही रूप को भूलकर बनावटी सामाजिक परिवेश को अपनाता है | आज ९०% छात्रों ने अपना जीवन इसी तरह किसी न किसी अनचाहे क्षेत्र में सिर्फ जीविका के आधार पर चुना है I ९० से १००% अंक लाने वाले छात्र भी अपने अनुसार जीवन नही बना पाते है, तथा उनका आई.क्यू बढ़िया होने के बाबजूद भी वो अपने शिक्षा को वास्तविक स्वरुप नही दे पाते है I अतः अब हमे छात्रों के मानसिक क्षमता पर आधारित शिक्षा को ही महत्त्व देना चाहिए I जानवरों की तरह बच्चों के पीछे पड़ने से शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है| इसलिए शिक्षा का स्वरुप बच्चो के दिमागी क्षमाताओ के अनुसार होना चाहिए ताकि वे स्वतंत्र रूप से अपनी गतिविधियों को अपने सही दिशा की ओर अधिक से अधिक बेहतर बनाने की कोशिश कर सकें| शिक्षा प्राप्त करने पर सुविधा प्राप्त होती है तथा में प्रसन्नचित्त होने के कारण जो भी शिक्षा ग्रहण करता है, वह उसके भावी जीवन को प्रसन्नचित्त रखकर जीने का अधिकार देती है| इस तरह विद्यार्थी में किसी प्रकार का तनाव नहीं रहता तथा छात्र एवं पालको के मध्य सामंजस्य होने के कारण शिक्षा का भावी रूप दिखाई देने लगता है I
उन्होंने आगे बताया की  शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जो हमारे जीवन को एक नयी विचारधारा, नया सवेरा देता है, ये हमे एक परिपक्व समाज और स्वर्णिम राष्ट्र बनाने में मदद करता है । यदि शिक्षा के उद्देश्य सही दिशा मे हों तो ये इन्सान को नये नये प्रयोग करने के लिये उत्साहित करते हैं । शिक्षा और संस्कार साथ साथ चलते हैं, या कहा जाये तो एक दूसरे के पूरक हैं । शिक्षा हमें संस्कारों को समझने और बदलती सामाजिक परिस्थियों के अनुरूप उनका अनुसरण करने की समझ देता है । आज शिक्षा जिस मुकाम पर पहुँच चुकी है वहाँ उसमें परिवर्तन की गुंन्जा‌इश है, आज हमें मिल बैठकर सोचना चाहिये, कि यदि शिक्षा हमारे उद्देश्यों को पूरा नही करती तो ऐसी शिक्षा का को‌ई मतलब नहीं है । इसलिए हमे ये समझना होगा की हम क्या पढ़ रहे है?, और क्यों पढ़ रहे है ? इस पढाई को हम अपने व्यावसायिक जीवन में किस तरह इस्तेमाल कर सकते है I आज देश में एक ऐसी तकनीक आ गयी है जिससे बच्चो को बहुत छोटी उम्र में ये बताया जा सकता है वो आगे चल कर किस क्षेत्र में सबसे अच्छा कर सकता है I इस टेस्ट का नाम है DMIT, इस टेस्ट की मदद से छुपी हुई प्रतिभा को उजागर करके बच्चो को उनके रूचि के अनुसार करियर के विकल्प दिये जा सकते है I

Resonance International School में बच्चो को DMIT से अवगत कराते हुए 

Thursday, 2 August 2018

प्रेरणा v/s अनुशासन - राजेश अग्रवाल

लाइफ कोच  श्री  राजेश अग्रवाल जी 

प्रेरणा v / s अनुशासन : सफलता के क्षेत्र में किये गये  विभिन्न शोधों ने ये दिखाया है कि जो व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में एक बड़ी ऊंचाई  को प्राप्त करते हैं, वह केवल अपनी प्रेरणा से अनुशासन का शिष्य रहा है। हालांकि यह बिल्कुल सच है कि प्रेरणा हर किसी के लिए आवश्यक है, यह भी सच है कि सफल होने में अनुशासन “प्रेरणा” से  बड़ी भूमिका निभाता है। प्रेरणा कई बार  अल्पकालिक होता है I  किसी भी प्रेरक प्रसंग को सुनकर कोई  व्यक्ति प्रेरित तो हो सकता है, लेकिन अपनी प्रेरणा को  बनाये रखने के लिए, उसको अनुशासन का छात्र होना चाहिए। प्रेरित व्यक्ति एक या दो दिनों के लिए कार्रवाई में देरी कर सकता है, लेकिन अनुशासित व्यक्ति जो मुसलाधार बारिस, तपती धूप और यहां तक ​​कि  कंपकपाती  ठंड में भी अपनी दैनिक कार्रवाई में देरी नहीं करता है। अनुशासित व्यक्ति कभी भी कार्रवाई में देरी नही करता या उसे टालता नही है ।  किसी भी व्यक्ति की अन्य कोई भी कौशल, रणनीति, टिप्स या तकनीकें तभी आपके काम आयेगी जब आप अनुशासित होंगे I हम में से बहुत से  लोग जो कई बार 1 जनवरी या नए साल पर ये  प्रतिज्ञा लेते हैं, की अब  अपनि आदतों में एक बदलाव लायंगे, लेकिन वे अनुशासन की कमी के कारण जल्दी  ही छोड़ देते हैं । इसलिए दोस्तों, अब हमे खुद के बारे में यह जांचने की जरुरत है कि हम केवल प्रेरित हैं, या हम अपने प्रत्येक गतिविधि में अनुशासित है I अगर हम सिर्फ प्रेरणात्मक बाते सुनते है, और उस अनुशासित तरीके से कारवाई नही करते है तो हम जभी सफल नही हो पाएंगे I एक सर्वेक्षण के अनुसार  प्रेरणात्मक सभा में शामिल होने वाले लोगो में से केवल 3% लोग अपने निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करते हैं, क्योंकि वे अत्यधिक अनुशासित हैं। - राजेश अग्रवाल