Thursday, 29 June 2017

वर्तमान शिक्षण प्रणाली आ एकर दुष्परिणाम के जिम्मेदार के ?

अभी हालहि  मधुबनी मे मिथिला सेवी राघबेन्द्र रमण केर अनुज बारहवीं परीक्षा मे अनुतीर्ण भेलाक कारणे  आत्महत्या कय लेलन्हि! शोकाकुल परिवार के व्यथा अपने सब बुइझ सकैत छी ! मुदा अहाँ लेल त इ एकटा न्यूज़ मात्र भ सकैय कियाकि अहाँ सब सबटा दोष सरकार के दय अपन कर्तव्य के इति श्री बुइझ लैत छी !
ई घटना मात्र सरकार के शिक्षा व्यवस्था पर नै अपितु हमरा आहाँक समाजक मानसिकता पर सेहो बड्ड पैघ प्रश्न चिन्ह छैक! हम सभ अपना परिवारक  बच्चा के गुण-अवगुण, आ ओकर मष्तिष्क में अद्भुत क्षमता से अनभिग्य छि आ ओकरा अपना/समाजक हिसाब स चलाब चाहै छि बिना इ सोचने की अहाँ के बच्चा कोनो कम्पुटर नै जे अहाँ अपना पसंद के सोफ्टवेयर इंस्टाल क लेब ! देखियो अहांक बच्चा के मष्तिष्क के प्रोग्रामिंग गर्भावस्था के चारिम सप्ताह से शुरू भ गेल रहै, आ ऐना में अहाँ अपना हिसाब स प्रोग्रामिंग कर चाहब त रिजल्ट केर जिम्मेदार भी अहिं के बन परत !
कोनो भी बच्चा मंदबुद्धि नै होइत छैक, मुदा जौ कोनो विशेष क्षेत्र में ओकर रूचि नै लागल, या ओ ओही विशेष क्षेत्र में कमजोर छै त हम अहाँ आ हमर समाज ओही बच्चा के मंदबुद्धि कहिते कहिते ओकरा मंदबुद्धि बना क छोरय छि ! ऐना में कहू जे दोषी की  ओ बच्चा ? जेकर मष्तिष्क निर्माण में हमर अहांक कोनो योगदान नै , आ की हम अहाँ जे ओकरा मंदबुद्धि बनाव में अपन पूरा योगदान दैत छि ?
देखियौ परीक्षा मे भेटल प्राप्तांक सं  अहाँ बच्चा के प्रतिभा के आकलन नै करु, ओकर प्रतिभा के चिन्हु आ ओकर विकास करियो, तखने एकटा स्वस्थ समाजक निर्माण भ सकत ! अपन बच्चा पर बेसी सं बेसी नम्बर अनबाक बोझ नै थोपू, ओकरा प्रतिभा के  प्रोत्साहित करियो जाहि स ओ अपन पंसदीदा क्षेत्र में अपन करियर बना खुशहाल जीवन जी सकै !
सब बच्चा सब क्षेत्र में नीक प्रदर्शन नै क सकैय, मुदा कोनो नै कोनो क्षेत्र एहन जरुर छैक जाहि में अहांक बच्चा बहुत निक प्रदर्शन क सकैय, त आबो विलम्ब नै करू आ अपन अपन बच्चा के उज्ज्वल भविष्य हेतु ओकर प्रतिभा के पहचान करू आ ओकरा प्रोत्साहित करू ! समाज के दिखाबा लेल अपन बच्चा संग अन्याय नै करू ! बहुत रास एहन विकसित राष्ट्र छैक जाहि में बच्चा सबहक प्रतिभा के आकलन नर्सरी में भ जायत छैक,  आ ओकर प्रतिभा के आधार पर ही ओही बच्चा के करियर निर्धारण बचपने में भ जायत छैक,  मुदा एही क्षेत्र में भारत  अखन धैर बहुत पछुवायल अइछ, मुदा आब नै रहत कियाकी आब जापान स एकटा विशेष टेक्नोलॉजी जे बच्चा के जन्मजात क्षमता आ प्रतिभा के उजागर करैत सटीक करियर सुझाव दैइत  अइछ ओ अहांक शहर में सेहो आइब गेल !
विशेष जानकारी आ निःशुल्क  करियर सम्बंधित सलाह सुझाव लेल अहां अपन सवाल पठा सकैय छी, हमर इमेल अइछ  anandmohan.dmt@gmail.com , अहाँ व्हाटसैप पर सेहो अपन सवाल पठा सकै छी जाहि लेल हमर व्हाटसैप नम्बर रहल अइछ
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Monday, 26 June 2017

शिक्षण प्रणाली में बदलाव अत्यंत जरुरी

 दुनिया का हर विकसित राष्ट्र या यु कहे समझदार देश अपने कुल जीडीपी का १०% हिस्सा शिक्षा व्यवस्था पर खर्च करता है I दुर्भाग्यवश हमारा देश ऐसे भ्रष्ट नेताओ के चपेट में है जो शिक्षा व्यवस्था को पूरा पूरा बर्बाद कर दिया है जिससे होशियार बच्चे पहले तो इस उलटे सिस्टम को जिसमे की कॉपी चेक करने वाला या स्कूल का शिक्षक ही बच्चो से कम जानकारी रखता है, और उसके बाद फिर आरक्षण की दोहरी मार झेले, ऐसे में हमारे देश में हर वर्ष लाखो प्रतिभाशाली बच्चे  इस भ्रष्ट तन्त्र को झेलते झेलते आत्महत्या कर लेते है और जो बचते है वो अपना लक्ष्य बदलकर कुछ और करने लगते है, और ये पुरे देश का नुकसान है क्योंकि उस देश को चलाने वाला सही व्यक्ति सही जगह नही पहुँच पा रहा है I ऐसे में  भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए शिक्षा क्षेएत्र में अनुसंधान कार्य की आवश्यकता है। अनुसंधान एक उद्देश्यपूर्ण और सविचार प्रक्रिया है। इसका उद्देश्य ज्ञान को बढ़ाना और परिमार्जित करउपयोगी बनाना है। मानव ज्ञान के विकास के लिए अनुसंधान अत्यावश्यक है और तभी जीवन का विकास संभव है। अनुंधान एक उद्देश्यपूर्ण बौद्धिक क्रिया है, इसकी प्रक्रिया वैज्ञानिक होती है।
क्रियात्मक अनुसंधान वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यवहारिक कार्यकर्ता वैज्ञानिक विधि से अपनी समस्याओं का अध्ययन अपने निर्णय और क्रियाओं मे निर्देशन, सुधार और मूल्यांकन करते है। शिक्षा के क्षेत्र में समस्यायें बहुत है। क्रियात्मक अनुसंधान कक्षा कक्ष की विभिन्न स्थितियों की समस्याओं का हल खोजने, निदानात्मक मूल्यांकन और उपचारात्मक उपाय करने की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण, उपयोगी और सामयिक सिद्ध होता है। निःसंदेह शिक्षा में क्रियात्मक अनुसंधान का लक्ष्य नवीन शैक्षिक ज्ञान की खोज है जो उन समस्याओं को हल करने हेतु अनुसंधान शिक्षा के क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली विभिन्न समस्याओं के निदान एवं उपचार में पर्याप्त सीमा तक उपयुक्त एवं कारगर सिद्ध होता है। क्रियात्मक अनुसंधानों का अभिप्रयास उन अनुसंधानों से है जिनका प्रमुख उद्देश्य शिक्षण संस्थानों की व्यावहारिक समस्याओं का हल खोजना है। शिक्षण के क्षेत्र में अब तक प्रायः मौलिक अनुसंधान एवं व्यावहारिक अनुसंधान होते आए हैं। इन दोनों प्रकार के अनुसंधानों में अनुसंधानकर्ता के लिए विद्यालय के जीवन से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित होना आवश्यक नहीं है। इस समस्या को हल करने के लिए शिक्षा में क्रियात्मक अनुसंधान का विकास हुआ है। शिक्षा के क्षेत्र में क्रियात्मक अनुसंधान का विचार सबसे पहले अमेरिका के कुछ शिक्षाशास्त्रियों द्वारा आरंभ किया गया था। इसमें प्रमुख रूप से कोलियर, लुइन, हेरिकन और स्टोफेन कोरे शामिल थे। स्टोफेन कोरे के मुताबिक क्रियात्मक अनुसंधान का अभिप्राय उस प्रतिक्रिया से है जिसके द्वारा अभ्यासकर्ता अपने निर्णयों तथा प्रतिक्रियाओं का पथ-निर्देशन एवं मूल्यांकन करने के लिए अपनी समस्याओं का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करने के प्रयत्न करते हैं। किसी भी व्यवस्था को भली प्रकार संचालन के लिए उसके सदस्य ही उत्तरदायी होते है। उनके समक्ष समस्याएं आती है, उसकी गहनता को कार्यकर्ता ही भली प्रकार समझ सकता है। अतः कार्यकर्ता को कार्यप्रणाली की समस्या के चयन करने तथा उसके समाधान ढूंढने की पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए तभी वह अपने कार्य कौशल का विकास कर सकता है। कार्यकर्ता द्वारा स्वयं की कार्यप्रणाली की समस्या का चयन करने, उसका वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करने एवं समाधान ढूंढकर वर्तमान क्रिया में सुधार करने की प्रक्रिया को क्रियात्मक अनुसंधान कहते है।
क्रियात्मक अनुसंधान इस प्रकार अनुसंधान की नवीनतम शाखाओं में से एक है। संक्षेप में कह सकते हैं, क्रियात्मक अनुसंधान का अभिप्राय विद्यालय में संपादित की गई उस क्रिया है से जिसके द्वारा विद्यालय की कार्य-प्रणाली में सुधार, संशोधन एवं प्रगति के लिए विद्यालय के ही अभ्यासकर्ता जैसे-शिक्षक, प्रधानाध्यापक, प्रबंधक तथा निरीक्षक विद्यालय की समस्याओं का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करते हैं।
क्रियात्मक अनुसंधान की प्रमुख विशेषता
क्रियात्मक अनुसंधान में विद्यालय की समस्याओं का विधिपूर्वक अध्ययन होता है। इसमें अनुसंधानकर्ता विद्यालय के शिक्षक, प्रधानाध्यापक, प्रबंधक और निरीक्षक स्वयं ही होते हैं। इस अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य विद्यालय की कार्यप्रणाली में संशोधन कर सुधार लाना है। क्रियात्मक अनुसंधान में संपादित करने में शिक्षक, प्रधानाध्यापक, प्रबंधक और निरीक्षक वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हैं। अनुसंधान के अंतर्गत तत्कालीन प्रयोग पर अधिक बल देते हैं। क्रियात्मक अनुसंधान के उत्पादक और उपभोक्ता दोनों ही स्वयं शिक्षक, प्रधानाध्यापक, प्रबंधक और निरीक्षक होते हैं।  वीवी कामत ने अपने एक लेख में (कैन ए टीचर डू रिसर्च टीचिंग, 1975) भारत में अनुसंधान के कुछ क्षेत्रों का उल्लेख किया, जो इस प्रकार है। भिन्न-भिन्न भाषाओं में विभिन्न आयु वर्ग के बच्चों का शब्द भंडार, भारत में पब्लिक स्कूल, भाषा सीखने में भूलें, विभिन्न आयु वर्ग के बच्चों की ऐच्छिक क्रियाएं। विभिन्न आयु वर्ग के बच्चों की लंबाई, भार तथा अन्य शारीरिक लक्षण, भूगोल एवं इतिहास की अध्यापन पद्धतियां शामिल हैं। बालकों एवं बालिकाओं की अध्ययन अभिरूचियां, कुशाग्र बुद्धि बालकों की शिक्षा, मानसिक रूप से पिछड़े बालकों की शिक्षा भी शामिल करने पर जोर था। भारतीय शिक्षाशास्त्रियों का शैक्षणिक क्षेत्र में योगदान, माध्यमिक विद्यालयों में विभिन्न आयु वर्ग के छात्रों एवं छात्रों की मन पसंद क्रियाएं (हाबीज) पर भी जोर दिया गया था। प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों की शैक्षिक योग्यताएं, नगर तथा ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों की उपलब्धियों में अंतर, शिशु विद्यालयों में पढ़े हुए तथा न पढ़े हुए बच्चों का तुलनात्मक अध्ययन की बात कही गई थी। इन सूचियों पर गौर करने से इनमें कुछ ऐसी समस्याएं हैं जो क्रियात्मक अनुसंधान के अंतर्गत आती है। उन पर अनुसंधान होने से शिक्षा की अनेक महत्वपूर्ण समस्याओं का समाधान संभव होगा और वे अनुसंधान राष्ट्र के विकास में सहायक होंगे। शिक्षा में क्रियात्मक अनुसंधान की समस्याओं का स्रोत स्वयं स्कूल होता है। स्कूल की कार्य प्रणाली में प्रत्येक समस्या का उद्गम खोजा जा सकता है। समस्या का उचित चयन करने के बाद उसके स्वरूप का विश्लेषण जरूरी है। इसका अभिप्राय समस्या को निश्चित रूप से स्थापित करना है। ऐसा करना अनुसंधान की सफलता के लिए आवश्यक चरण है। समस्या को परिभाषित करने के बाद उसका मूल्यांकन करना बहुत जरूरी है। इस मूल्यांकन से अनुसंधानकर्ता को समस्या के अपेक्षित परिणाम का ज्ञान हो जाता है। शिक्षकों, प्रधानाध्यापकों, प्रबंधकों तथा निरीक्षकों को क्रियात्मक अनुसंधान द्वारा कार्य करते हुए सीखने का अवसर मिलता है, जो ज्ञान कार्य करते हुए अर्जित किया जाता है, वह अधिक स्थायी तथा व्यावहारिक होता है।
अनुसंधान जरूरी

भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए अनुसंधान कार्य की जरूरी है। शिक्षा के क्षेत्र में इसकी अधिक आवश्यकता है, क्योंकि अन्य क्षेत्रों में होने वाली उन्नति क्षैक्षिक क्षेत्र में उन्नति पर अवलंबित रहती है। ऐसी परिस्थिति में शिक्षा में कुछ नवीन और विशिष्ट अनुसंधानों किए जाने आवश्यक है। इन अनुसंधानों में क्रियात्मक अनुसंधान को प्रमुख स्थान देना होगा, क्योंकि इस प्रकार के अनुसंधानों का स्कूलों की गतिविधियों तथा कार्य करने वाले व्यक्तियों से प्रत्यक्ष संबंध होता है। हमारे स्कूल और शिक्षा तब तक परंपरागत लीक पर ही कायम रहेंगे जब तक शिक्षक, शैक्षिक प्रशास, अभिभावक और खुद छात्र इसका मूल्यांकन नहीं करेंगे। शिक्षा में यदि कोई विकास की दिशा दिखाई दे रही है शिक्षित व्यक्ति विद्यालय से बाहर आकर समाज एवं कार्यक्षेत्र में अपने को स्थापित नहीं कर पाता। ऐसी स्थिति के लिए शिक्षा को जवाबदेह माना जाता है, इसलिए इसमें सुधार होना आवश्यक है। इस लिहाज से सभी के सहयोग से क्रियात्मक अनुसंधान किया जाना आवश्यक है। खुद छात्र भी क्रियात्मक अनुसंधान से लाभांवित होंगे। साथ ही वे इसमें सहयोग और अपनी शैक्षिक क्षमता तथा योग्यता विकसित करने के लिए प्रेरित होंगे। अब जरुरत है की हर कोई अपना जन्मजात क्षमता और प्रतिभा को जाने और सही जगह अपने टैलेंट का पूरी तरह से इस्तेमाल करे I जन्मजात क्षमता को जानने के लिए अब एक आधुनिक और वैज्ञानिक टेस्ट जापान से भारत में भी आ गया है, अब आप भी अपनी छुपी हुई प्रतिभा को उजागर कर सकते है I 
इस विषय पर विस्तार से चर्चा करने व अपने विचार साझा करने के लिए आप सदर आमंत्रित है I
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Sunday, 25 June 2017

ऐ मेरे वतन के लोगो ..कुछ याद उन्हें भी करलो.. जो बी.टेक करके आये....

कहानी B.tech की .....एक बार जरूर पढे... और समझे ...
#एक इंजीनियर की आत्म कथा Ankit Aman Prakash Ranjan Er. Chandrashekhar Prasad समेत सभी इंजीनियर्स विरादरी को समर्पित ...
अभी अभी एक महान आत्मा से बहस हो गई. ये महोदय कुछ साल पहले गाजियाबाद आ गए थे. गांव से दसवीं पास हैं और अभी एक तथाकथित कंपनी में काम कर रहे हैं. पिछले 10-15 सालों में गाजियाबाद ने बहुत बदलाव देखे हैं. तो इनकी भी तरक्की NCR के बदलते समय के साथ हुई. अभी ये 20-25 हजार कमाते हैं. साथ ही पैसे कमाने के और रास्ते भी जोड़ लिए है. उनकी नजर में वो सफल हैं. मुझे भी कोई दिक्कत नहीं है उनसे, लेकिन मेरी नजर में सफल और समृद्ध होनी की परिभाषा थोड़ी अलग है.
खैर, बात ये हुई कि उन्होंने वो बात छेड़ दी, जो पिछले 4 साल की इंजीनियरिंग के दौरान मैंने सबसे सुना है. चाहे वो मेरे पापा के दोस्त हो या कोई तथाकथित प्रबुद्ध इंसान. अच्छा बीटेक कर रहे हो? आजकल तो इतने बीटेक वाले हो गये हैं कि पूछ मत. जिसे देखो, वही बीटेक कर रहा है. तिवारी जी, इतने इंजीनियरिंग वाले सड़क पर घूम रहे हैं. फिर भी आपने इसका दाखिला करा दिया? 10 लाख लगाने के बाद भी 15-20 हजार की नौकरी इतनी मुश्किल से मिली रही है. आपने इतने पैसे बैंक में भी रख दिया होता, तो इससे ज्यादा ब्याज मिल जाता. और 10 लाख भी बच जाते. इतने पैसों से कोई व्यवसाय ही कर लेते तो ज्यादा कमाई हो जाती.
हर बार मैं इन बातों को हंस के टाल देता था. क्योंकि बड़ों को जवाब देने की आदत नहीं है. लेकिन ऐसी बातों से पापा घबरा जाते थे. कभी-कभी उन्हें लगने लगाता था कि उनसे गलती तो नहीं हो गई है.
मैं ये सुनते रहता हूं कि फलां के बेटे को देखो. दुकान कर लिया है, महीने का 30-35 हजार से ज्यादा ही कमा लेता है. फलां को देखो, पढ़ाई-लिखाई पर बिना पैसा खर्च किए विदेश चला गए और अब घर बना रहा है. वो मुनचुन अब कोयला का ठेकेदार हो गया है, और बोरी भर के पैसा कमा रहा है. और वो सचिन पुलिस में भर्ती हो गया है. अब तो उसके घरवालों की तो लॉटरी लग गई है.
बातें तो बहुत है लेकिन इतना काफी है, मेरा दर्द समझने के लिए. 4 सालों की पढ़ाई मेरी इन्हीं बातों के साथ ही तो हुई है. आज जब मेरा सपना पूरा हो रहा है. एक बड़ी कंपनी में बतौर इंजीनियर काम कर रहा हूं. लेकिन यहां भी एक ऐसे महाशय से मुलाकात हो गई, जो सफलता को पैसों की तराजू से तौलते हैं. कहने लगे मैं तो सिर्फ दसवीं पास हूं और 25-30 हजार कमा लेता हूं. और आप 10 लाख लगाकर बीटेक करके मुझसे कम कमाते हैं. क्या फायदा ऐसी पढ़ाई का?
अब बस, बहुत सम्मान, अब मेरी सुनो.
हां, 10 लाख लगाकर की है बीटेक. उम्र से पहले बड़ा होकर, मेहनत करके, मां-बाप, भाई-बहनों से दूर रहकर. पता है क्यों कि बीटेक? ताकि अपने आप से उठकर कुछ सोच सकूं. दुकान और विदेश जाने की सोच से बाहर निकलूं. स्वार्थी न बनूं. सिर्फ अपनी तिजोरी भरने के बारे में न सोचूं, बल्कि लोगों के बारे में सोचूं. आप लोगों की तरह नहीं. जो समाज बदलने की बातें करते हैं लेकिन करते नहीं.
मुझे अब तक एक भी बीटेक वाले सड़क पर घूमता नहीं दिखा. अगर आपको मिला है तो जाकर उसकी सच्चाई देखो. सब कुछ समझ जाओगे. आपने सिर्फ उसे बीटेक पढ़ते सुना है. लेकिन उसने बीटेक में क्या किया है, वो नहीं देखा है. किसी एक को सड़क पर घूमते देखकर अंदाजा मत लगाइए. और न ही सबको एक तराजू में तौलिए. अगर सब लोगों आपकी तरह सोचने लगे तो देश में न कलाम होते न रमन. मैं भगवान का शुक्रिया करता हूं कि इस देश में मेरे मां-बाप जैसे लोगों को बनाया हैं. वरना पता नहीं इस देश का क्या होता.
चलो मान लिए कि आपको बीटेक वालों से ज्यादा पैसा मिलता होगा. वो पैसा तुम्हारे लिए मायने रखता होगा. हमारे लिए नहीं, क्योंकि हमें अपने काम से प्यार है. इंजीनियर होने के एहसास से प्यार है. रही बात पैसों की तो हम चाहे शुरुआत कैसी भी करें. एक साल के अनुभव के बाद आपके 15 साल की मेहनत को पीछे छोड़ देंगे. जानते हो क्यों? क्योंकि हमने बीटेक किया है.
एक आखिरी बात. आपने अपने बेटे को विदेश भेजने के बजाए 1 सेमेस्टर के लिए भी बीटेक कराया होता, तो दोनों को बीटेक का महत्व पता होता. 50 सबजेक्ट के डेढ़ सौ पेपर और 32 प्रैक्टिकल्स पास करने के बाद कोई बनता है बीटेक. दम है तो बीटेक की 4 साल की पढ़ाई करके दिखाओ. फिर मैं बताऊंगा कि कितने बीटेक वाले सड़क पर घूम रहे हैं.
बीटेक करके एक इंजीनियर होने का एहसास मिला. जान की बाजी लगाने वाले दोस्त मिले, प्यार मिला जिसके लिए जान भी दिया जा सकता है, देश के लिए कुछ कर जाने की सोच मिली, मुश्किल हालात को हैंडल करने की ताकत मिली.
आप दिमाग पर जोर न डालें. ये बातें समझ नहीं आएगी. पता है क्यों? क्योंकि आपने बीटेक नहीं किया

Monday, 22 May 2017

क्या आप शिक्षा के गिरते स्तर से अवगत है ???

आज शिक्षा शब्द ने अपने अंदर का अर्थ इस कदर खो दिया है कि आज न उसके अंदर का संस्कार जिंदा है और न व्यवहार। शिक्षा अपने समूचे स्वरूप में अराजकता, अव्यवस्था, अनैतिकता और कल्पना हीनता का पर्याय बन गई है। शिक्षा के जरिये अब न आचरण आ रहा न चरित्र, न मानवीय मूल्य, न नागरिक संस्कार, न राष्ट्रीय दायित्व एवं कर्तव्य बोध और न ही अधिकारों के प्रति चेतना। आज प्रत्येक वर्ग में शिक्षा के गिरते स्तर को लेकर चिंता जताई जा रही है। शिक्षा के गिरते स्तर पर लंबी-लंबी बहसे होती है। और अंत में उसके लिए शिक्षक को दोषी करार दिया जाता है। जो शिक्षक स्वयं उस शिक्षा का उत्पादन है और जहाँ तक संभव हो रहा है मूल्यों, आदर्शों व सामाजिक उत्तर दायित्व के बोध को छात्रों में बनाये रखने का प्रयत्न कर रहा है, तमाम राजनीतिक दबावों के बावजूद।

अब हम और इन्तजार नही कर सकते की कोई आएगा और जादू की छड़ी घुमा के शिक्षण प्रणाली को एकदम से बदल देगा I मित्रो शिक्षा से पूरी की पूरी नस्ल तैयार होती है,और एक नस्ल तैयार होने में लगभग 200 वर्ष लगते है, तो अगर हम अभी शिक्षण प्रणाली को बदलने से चुक गये तो दुबारा इसे बदल पाना नामुमकिन होगा I अतः आप सभी से निवेदन है की आइये हम साथ मिलकर शिक्षा के गिरते स्तर को रोके और शिक्षण प्रणाली में बदलाव लाये I


हमारे साथ जुड़ने के लिए संपर्क करे 9871949259,9471818604
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Thursday, 18 May 2017

हमारे बारे लोग क्या सोचते है ?? जरुर पढ़े

दोस्तों सच तो यह है कि लोग आपके बारे में अच्छा सुनने पर शक करते हैं लेकिन बुरा सुनने पर तुरंत यकीन कर लेते हैं। कई बार कुछ ऐसी किस्से सुनने में आते हैं, 3 दोस्त आपस में बात कर रहे थे पहला यार वो मदन था ना अपना दोस्त, उसकी तो किसी बड़ी कंपनी में जॉब लग गयी उसकी सैलरी भी 50 हजार है I दूसरा अरे वो झूठ बोल रहा होगा, बड़ी कंपनी में जॉब मिलना उतना आसान नहीं है.
तीसरा अरे कल तो मैंने उसे ऑटो में जाते देखा था अगर 50 हजार सैलरी होती तो गाड़ी में ना जाता,, वो झूठ बोल रहा है I देखा किसी ने यकीन नहीं किया। अब आगे पहला यार वो रवि था ना अपना दोस्त, उसको जॉब से निकाल दिया है. दूसरा ओह बहुत बुरा हुआ, वैसे रवि थोड़ा technically weak था उसे ज्यादा नॉलेज नहीं थी. तीसरा हम्म मुझे तो पहले ही पता था वो जॉब नहीं कर पायेगा. देखा सबने यकीन कर लिया। और ये कोई बनायीं हुई बातें नहीं है ये सच्चाई है, मानो या ना मानो लेकिन जो लोग इसको पढ़ रहे हैं मैं उन सब लोगों से गुजारिश करूँगा कि अगर कोई मित्र परेशानी में है या किसी से कोई गलती हुई है तो उसकी हंसी ना उड़ाइये। सच मानिये ये सब चीजें इंसान का आत्मविश्वास गिरा देती हैं, दूसरों को नकारात्मक बना देती हैं। आप दूसरों की मदद करिये, दूसरों के अच्छे कामों की प्रशंसा कीजिये, यही इस कहानी की सीख है,और हाँ, कहानी पढ़ने के बाद कही मत जाइये, नीचे कमेंट बॉक्स में अपना विचार जरूर लिखिए, मैंने ( आनंद मोहन )अच्छा काम किया है तो मेरी तारीफ कीजिये I

Saturday, 15 April 2017

बच्चे आत्महत्या क्यों करते है ??

आजकल बच्चो में जिस तरह से स्ट्रेस लेवल बढ़ता जा रहा है, वास्तव में यह बहुत ही चिंता का विषय है, बच्चे देश के भविष्य है, हमारे परिवार के भविष्य है और वो ही अपने आप को नही समझ पाते, अपनी क्षमताओ का आकलन नही कर पाते और लगातार अवसाद में जी रहे होते है I हम बच्चो के उच्च स्तर के रहन-सहन बढ़िया खान-पान कुल मिलकर अच्छी परिवरिश करने की नाकाम कोशिश करते है I हमे ये लगता है की अगर हम अपने बच्चो की सभी जरूरतों को पूरा करदे तो हमारे कर्तव्यो की इतिश्री समझने लगते है,उनको लगता है की हम खुद कष्ट झेले पर बच्चो को ना झेलने दे और बच्चो के उज्जवल भविष्य के लिए उसे बढ़िया से बढ़िया संसथान में शिक्षा के लिए भेज देते है I हम अपने बच्चो के मानसिक स्तर को जानने की जरुरत ही नही समझते, उनपर लगातार अच्छे नम्बर और अच्छी नौकरी के लिए दवाव बनाते है, और हमे लगता है की हम ये सब बच्चो के लिए ही कर रहे है I एक सरकारी आकंड़ो के मुताबिक लगभग 8,00,000(आठ लाख) हर वर्ष पूरी दुनिया में आत्महत्या करते है,जिसमे अकेले भारत से 17% यानी 1,36,000(एक लाख छतीस हजार) लोग आत्महत्या करते है ,बात यही ख़त्म नही होती,पुरे देश में लगभग 20,000 (बीस हजार) बच्चे (८-२२ वर्ष तक के) प्रतिवर्ष सिर्फ अपने पढाई को लेकर अवसादग्रसित होकर आत्महत्या करते है I हमारे समाज में लोग तब तक किसी गंभीर समस्या पर विचार नही करते जब तक की उनका खुद का कोई नुक्सान ना हो जाए, यह बहुत बड़ी विडंबना है हमारे समाज में, इस समस्या का समाधान बहुत ही सरल है और इसके लिए हमारा सुझाव है अभी स्कुलो और आँगनवाड़ी केन्द्रों में खिचड़ी खिलाने की बजाय बच्चो को उन्हें खुद को समझने के लिए सेमीनार का आयोजन किया जाए I हमलोग BhagyaShila Mind Academy के साथ मिलकर लोगो/बच्चो को उनकी असली जन्मजात क्षमता और मानसिक स्तर का मुल्यांकन कर उनको अपने जीवन में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने हेतु मार्गदर्शन करते है I हमारा एक ही लक्ष्य है और वो है भारतवर्ष के मासूम कलियों को खिलने से पहले मुरझाने से रोकना अगर आप भी इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहते है तो आज ही संपर्क करे 9871949259,9971543314,9899415067,9471818604
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