Tuesday, 23 January 2018

मित्रो आज नेताजी की 121वीं जयंती है, तो आइये जानते है उनका संक्षिप्त जीवन परिचय

मित्रो आज नेताजी की  121वीं जयंती है, तो आइये जानते है उनका   संक्षिप्त जीवन परिचय , नेताजी  सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा में कटक के एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। बोस के पिता का नाम 'जानकीनाथ बोस' और माँ का नाम 'प्रभावती' था। उनके पिताजी  जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वक़ील थे। प्रभावती और जानकीनाथ बोस की कुल मिलाकर 14 संतानें थी, जिसमें 6 बेटियाँ और 8 बेटे थे। सुभाष चंद्र उनकी नौवीं संतान और पाँचवें बेटे थे। अपने सभी भाइयों में से सुभाष को सबसे अधिक लगाव शरदचंद्र से था। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस  ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल में हुई। तत्पश्चात् उनकी शिक्षा कलकत्ता के प्रेज़िडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से हुई, और बाद में भारतीय प्रशासनिक सेवा (इण्डियन सिविल सर्विस) की तैयारी के लिए उनके माता-पिता ने बोस को इंग्लैंड के केंब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिया। अँग्रेज़ी शासन काल में भारतीयों के लिए सिविल सर्विस में जाना बहुत कठिन था किंतु उन्होंने सिविल सर्विस की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया। 1921 में भारत में बढ़ती राजनीतिक गतिविधियों का समाचार पाकर बोस ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली और शीघ्र भारत लौट आए। सिविल सर्विस छोड़ने के बाद वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गए। सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी के अहिंसा के विचारों से सहमत नहीं थे। वास्तव में महात्मा गांधी उदार दल का नेतृत्व करते थे, वहीं सुभाष चंद्र बोस जोशीले क्रांतिकारी दल के प्रिय थे। महात्मा गाँधी और सुभाष चंद्र बोस के विचार भिन्न-भिन्न थे लेकिन वे यह अच्छी तरह जानते थे कि महात्मा गाँधी और उनका मक़सद एक है, यानी देश की आज़ादी। सबसे पहले गाँधीजी को राष्ट्रपिता कह कर नेताजी ने ही संबोधित किया था। 1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया। यह नीति गाँधीवादी आर्थिक विचारों के अनुकूल नहीं थी। 1939 में बोस पुन एक गाँधीवादी प्रतिद्वंदी को हराकर विजयी हुए। गांधी ने इसे अपनी हार के रुप में लिया। उनके अध्यक्ष चुने जाने पर गांधी जी ने कहा कि बोस की जीत मेरी हार है और ऐसा लगने लगा कि वह कांग्रेस वर्किंग कमिटी से त्यागपत्र दे देंगे। गाँधी जी के विरोध के चलते इस 'विद्रोही अध्यक्ष' ने त्यागपत्र देने की आवश्यकता महसूस की। गांधी के लगातार विरोध को देखते हुए उन्होंने स्वयं कांग्रेस छोड़ दी। इस बीच दूसरा विश्व युद्ध छिड़ गया। बोस का मानना था कि अंग्रेजों के दुश्मनों से मिलकर आज़ादी हासिल की जा सकती है। उनके विचारों के देखते हुए उन्हें ब्रिटिश सरकार ने कोलकाता में नज़रबंद कर लिया लेकिन वह अपने भतीजे शिशिर कुमार बोस की सहायता से वहां से भाग निकले। वह अफगानिस्तान और सोवियत संघ होते हुए जर्मनी जा पहुंचे। सक्रिय राजनीति में आने से पहले नेताजी ने पूरी दुनिया का भ्रमण किया। वह 1933 से 36 तक यूरोप में रहे। यूरोप में यह दौर था हिटलर के नाजीवाद और मुसोलिनी के फासीवाद का। नाजीवाद और फासीवाद का निशाना इंग्लैंड था, जिसने पहले विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी पर एकतरफा समझौते थोपे थे। वे उसका बदला इंग्लैंड से लेना चाहते थे। भारत पर भी अँग्रेज़ों का कब्जा था और इंग्लैंड के खिलाफ लड़ाई में नेताजी को हिटलर और मुसोलिनी में भविष्य का मित्र दिखाई पड़ रहा था। दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। उनका मानना था कि स्वतंत्रता हासिल करने के लिए राजनीतिक गतिविधियों के साथ-साथ कूटनीतिक और सैन्य सहयोग की भी जरूरत पड़ती है। सुभाष चंद्र बोस ने 1937 में अपनी सेक्रेटरी और ऑस्ट्रियन युवती एमिली से शादी की। उन दोनों की एक अनीता नाम की एक बेटी भी हुई  जो वर्तमान में जर्मनी में सपरिवार रहती हैं। नेताजी हिटलर से मिले। उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत और देश की आजादी के लिए कई काम किए। उन्होंने 1943 में जर्मनी छोड़ दिया। वहां से वह जापान पहुंचे। जापान से वह सिंगापुर पहुंचे। जहां उन्होंने कैप्टन मोहन सिंह द्वारा स्थापित आज़ाद हिंद फ़ौज की कमान अपने हाथों में ले ली। उस वक्त रास बिहारी बोस आज़ाद हिंद फ़ौज के नेता थे। उन्होंने आज़ाद हिंद फ़ौज का पुनर्गठन किया। महिलाओं के लिए रानी झांसी रेजिमेंट का भी गठन किया जिसकी लक्ष्मी सहगल कैप्टन बनी। नेताजी' के नाम से प्रसिद्ध सुभाष चन्द्र ने सशक्त क्रान्ति द्वारा भारत को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से 21 अक्टूबर, 1943 को 'आज़ाद हिन्द सरकार' की स्थापना की तथा 'आज़ाद हिन्द फ़ौज' का गठन किया इस संगठन के प्रतीक चिह्न पर एक झंडे पर दहाड़ते हुए बाघ का चित्र बना होता था। नेताजी अपनी आजाद हिंद फौज के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा पहुँचे। यहीं पर उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा, "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा" दिया। 18 अगस्त 1945 को टोक्यो (जापान) जाते समय ताइवान के पास नेताजी का एक हवाई दुर्घटना में निधन हुआ बताया जाता है, लेकिन उनका शव नहीं मिल पाया। नेताजी की मौत के कारणों पर आज भी विवाद बना हुआ है। हम उनको आज श्रधा सुमन आर्पित करते है .

Thursday, 11 January 2018

क्या आप इस आधुनिक GPS के बारे में जानते है ??

हम आपकी क्षमता के अनुसार आपको रास्ता बताएँगे 
आज के प्रतिस्पर्धा के इस दौर में प्रत्येक माँ बाप का यह 
स्वपन होता हैं कि उनका बच्चा बुद्धिमान हो,
उच्च अभ्यास करने वाला हो और समाज में उच्च स्तर 
प्राप्त करने वाला बने। यह बच्चा क्या 
अभ्यास करेगा, उसका भविष्य कैसा होगा आदि जानकारी
 के प्रति ज्यादा उत्सुकता रहती है, 
और अगर यह जानकारी बच्चे कि बाल्यावस्था में या 
अभ्यास के महत्वपूर्ण पड़ाव के पहले मिल 
जाये तो माँ बाप इस बहुमूल्य जानकारी का सही उपयोग 
करके अपने बच्चे को सही मार्गदर्शन, 
प्रोत्साहन एवं योग्य क्षेत्र में शिक्षा दिलाने का अच्छा प्रबंध करके उनके श्रेष्ठ भविष्य निर्माण में 
सहयोग कर सकते हैं
मित्रो आजतक पुरे विश्व में सबसे ज्यादा प्रतिभाशाली व्यक्तित्व बिहार से ही हुवे है और निरंतर हमारे बिहार के बच्चे हर क्षेत्र में बिहार का नाम रौशन कर रहे है, परन्तु यह संतोषजनक नही है क्योंकि हजारो युवा अपने जीवन में उचित लक्ष्य प्राप्त करने में असफल रहते है , और उसका कारण है सही समय पर बच्चो को उचित मार्गदर्शन नही मिल पाना, बच्चे अपनी क्षमता के अनुसार करियर नही बना पाते जिसका नतीजा उन्हें जीवन भर किसी ऐसे कार्य को करते हुवे बिताना पड़ता है जिसमे उनका कोई रूचि ही नही है I आज विज्ञान के ज़माने में जापान की DMIT टेस्ट पद्धति  बच्चो के लिए GPS(ग्लोवल पोजिशनिंग सिस्टम) का काम करती है, इसके मदद से बच्चे अपने क्षमतानुसार अपने करियर का चुनाव कर आसानी से अपने लक्ष्य तक पहुँच सकते है I आपसे अनुरोध है की इस साल के बजट में बिहार के हर माध्यमिक विद्यालय के लिए कम से कम एक काउंसलर की नियुक्ति की जाए जो की इस वैज्ञानिक पद्धति के मदद से बच्चो को उनके जीवन का  सर्वश्रेष्ठ उपहार प्रदान करे I
पिछले कई सालों से इस प्रकार का मार्गदर्शन ज्योतिषशास्त्र की विभिन्न विधियों से किया जाता है
 लेकिन इस विधि में एक सामान रूपता नहीं पायी जाती है I इसलिए इस विधि में पूर्णतया विश्वास 
करना थोडा कठिन होता है। परन्तु अब इस महान वैज्ञानिक विधि से फिंगर प्रिंट के माध्यम से बहुत 
ही आसानी से, पूर्णतया सटीक मार्गदर्शन मिल सकता है। 
इसे ही Dermatoglyphics Multiple Intelligences Test (D.M.I.T) कहा जाता है।
इस वैज्ञानिक परिक्षण से किसी भी व्यक्ति की विभिन्न प्रकार की बुद्धि की जानकारी प्राप्त करके, उसमें क्या अच्छाईयाँ व् कमियां हैं, उसका स्वभाव, व्यवहार, पठन की रूचि, याद करने की क्षमता आदि कई पह्लुयों को जाना जा सकता है। इस जानकारी का उपयोग करके अपने बच्चे के लक्ष्य प्राप्ति में उपयुक्त कार्यवाही कर सकते हैं।


Saturday, 18 November 2017

कैरियर के चुनाव मे उधेड़बुन की स्थिति नहीं होनी चाहिए। फैसला बिल्कुल अपने लक्ष्य को केन्द्र में लेकर होना चाहिए..

आज हर मां-बाप शिक्षा को स्तरहीन बना रहे है, कुछ ही है जो बच्चों को रूचिनुसार शिक्षा दिला पाने में सफल हो पाते है I  अधिकतर माँ-बाप अपनी बुद्धि को ही आधार मान-कर बच्चों को अपने विवेक के अनुसार विषय दिलाकर उस पर पूर्ण ध्यान केन्द्रित करने का दबाब बनाते है I आज समाज में प्रतिष्ठित बनने की होड़ मची होने के कारण कोई भी अपने बच्चो को दबाव-मुक्त शिक्षा नही दे पा रहे है, और उसका परिणाम ???? बस छात्र भटकाव की ओर अग्रसर हो जाता है I दबाव में रहने वाला हर विद्यार्थी जैसे-तैसे डिग्री पास कर अपने योग्यतानुसार सही क्षेत्र में कार्य ना मिलने के कारण, वह तय नहीं कर पाता की उसका महत्त्व डिग्री के उपरांत परिवार एवं समाज में कैसे मिले?? दूसरी तरफ उम्र बढ़ते रहने के कारण उसे जो भी क्षेत्र मिलता है उसमें अपनी आजीविका शुरू कर अपने सही रूप को भूलकर बनावटी सामाजिक परिवेश को अपनाता है | आज ९०% छात्रों ने अपना जीवन इसी तरह किसी न किसी अनचाहे क्षेत्र में सिर्फ जीविका के आधार पर चुना है I ९० से १००% अंक लाने वाले छात्र भी अपने अनुसार जीवन नही बना पाते है, तथा उनका आई.क्यू बढ़िया होने के बाबजूद भी वो अपने शिक्षा को वास्तविक स्वरुप नही दे पाते है I अतः अब हमे छात्रों के मानसिक क्षमता पर आधारित शिक्षा को ही महत्त्व देना चाहिए I
जानवरों की तरह बच्चों के पीछे पड़ने से शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है| इसलिए शिक्षा का स्वरुप बच्चो के दिमागी क्षमाताओ के अनुसार होना चाहिए ताकि वे स्वतंत्र रूप से अपनी गतिविधियों को अपने सही दिशा की ओर अधिक से अधिक बेहतर बनाने की कोशिश कर सकें| शिक्षा प्राप्त करने पर सुविधा प्राप्त होती है तथा में प्रसन्नचित्त होने के कारण जो भी शिक्षा ग्रहण करता है, वह उसके भावी जीवन को प्रसन्नचित्त रखकर जीने का अधिकार देती है| इस तरह विद्यार्थी में किसी प्रकार का तनाव नहीं रहता तथा छात्र एवं पालको के मध्य सामंजस्य होने के कारण शिक्षा का भावी रूप दिखाई देने लगता है I
मित्रो शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जो हमारे जीवन को एक नयी विचारधारा, नया सवेरा देता है, ये हमे एक परिपक्व समाज और स्वर्णिम राष्ट्र बनाने में मदद करता है । यदि शिक्षा के उद्देश्य सही दिशा मे हों तो ये इन्सान को नये नये प्रयोग करने के लिये उत्साहित करते हैं । शिक्षा और संस्कार साथ साथ चलते हैं, या कहा जाये तो एक दूसरे के पूरक हैं । शिक्षा हमें संस्कारों को समझने और बदलती सामाजिक परिस्थियों के अनुरूप उनका अनुसरण करने की समझ देता है । आज शिक्षा जिस मुकाम पर पहुँच चुकी है वहाँ उसमें परिवर्तन की गुंन्जा‌इश है, आज हमें मिल बैठकर सोचना चाहिये, कि यदि शिक्षा हमारे उद्देश्यों को पूरा नही करती तो ऐसी शिक्षा का को‌ई मतलब नहीं है ।
कैरियर के चुनाव मे उधेड़बुन की स्थिति नहीं होनी चाहिए। फैसला बिल्कुल अपने लक्ष्य को केन्द्र में लेकर होना चाहिए। यदि आई.ए.एस. बनना है तो अपको किस रूचि के विषय को अपना कर आसानी से कामयाबी हासिल की जा सकती है, इसका चयन भी सर्वप्रथम अत्यावश्यक है। अब और कंफ्यूज रहने की जरुरत नही है आज ही संपर्क करे 9871949259 से, हम आपको आपके जन्मजात प्रतिभा के आधार पर हम आपको करियर विकल्प देंगे जिसमें आप शीर्ष तक पहुँच सके ।
करियर सम्बंधित सलाह सुझाव के लिए इमेल करे anandmohan.dmt@gmail.com
अतः आइये हम सब साथ मिलकर संकल्प ले की आज के बाद हम अपने सम्पर्क के हर बच्चे को उसके मानसिक क्षमता के आधार पर ही अपने शिक्षा क्षेत्र के चुनाव करने  का बहुमूल्य सुझाव देंगे I



Sunday, 13 August 2017

शिक्षा में क्रियात्मक अनुसंधान आवश्यक

दुनिया का हर विकसित राष्ट्र या यु कहे समझदार देश अपने कुल जीडीपी का लगभग २-१०% हिस्सा शिक्षा व्यवस्था पर खर्च करता है I दुर्भाग्यवश हमारा देश ऐसे भ्रष्ट व्यवस्था के चपेट में है जो शिक्षा व्यवस्था को पूरा पूरा बर्बाद कर दिया है I  ऐसे में हमारे देश में हर वर्ष लाखो प्रतिभाशाली बच्चे  इस भ्रष्ट तन्त्र को झेलते झेलते आत्महत्या कर लेते है और जो बचते है वो अपना लक्ष्य बदलकर कुछ और करने लगते है, और ये पुरे देश का नुकसान है क्योंकि उस देश को चलाने वाला सही व्यक्ति सही जगह नही पहुँच पा रहा है I ऐसे में  भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए शिक्षा क्षेएत्र में अनुसंधान कार्य की आवश्यकता है। अनुसंधान एक उद्देश्यपूर्ण और सविचार प्रक्रिया है। इसका उद्देश्य ज्ञान को बढ़ाना और परिमार्जित करउपयोगी बनाना है। मानव ज्ञान के विकास के लिए अनुसंधान अत्यावश्यक है और तभी जीवन का विकास संभव है। अनुंधान एक उद्देश्यपूर्ण बौद्धिक क्रिया है, इसकी प्रक्रिया वैज्ञानिक होती है। 

शिक्षा में क्रियात्मक अनुसंधान वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा व्यवहारिक कार्यकर्ता वैज्ञानिक विधि से अपनी समस्याओं का अध्ययन अपने निर्णय और क्रियाओं मे निर्देशन, सुधार और मूल्यांकन करते है। शिक्षा के क्षेत्र में समस्यायें बहुत है। क्रियात्मक अनुसंधान कक्षा कक्ष की विभिन्न स्थितियों की समस्याओं का हल खोजने, निदानात्मक मूल्यांकन और उपचारात्मक उपाय करने की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण, उपयोगी और सामयिक सिद्ध होता है। निःसंदेह शिक्षा में क्रियात्मक अनुसंधान का लक्ष्य नवीन शैक्षिक ज्ञान की खोज है जो उन समस्याओं को हल करने हेतु अनुसंधान शिक्षा के क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली विभिन्न समस्याओं के निदान एवं उपचार में पर्याप्त सीमा तक उपयुक्त एवं कारगर सिद्ध होता है। क्रियात्मक अनुसंधानों का अभिप्रयास उन अनुसंधानों से है जिनका प्रमुख उद्देश्य शिक्षण संस्थानों की व्यावहारिक समस्याओं का हल खोजना है। शिक्षण के क्षेत्र में अब तक प्रायः मौलिक अनुसंधान एवं व्यावहारिक अनुसंधान होते आए हैं। इन दोनों प्रकार के अनुसंधानों में अनुसंधानकर्ता के लिए विद्यालय के जीवन से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित होना आवश्यक नहीं है। इस समस्या को हल करने के लिए शिक्षा में क्रियात्मक अनुसंधान का विकास हुआ है। शिक्षा के क्षेत्र में क्रियात्मक अनुसंधान का विचार सबसे पहले अमेरिका के कुछ शिक्षाशास्त्रियों द्वारा आरंभ किया गया था। इसमें प्रमुख रूप से कोलियर, लुइन, हेरिकन और स्टोफेन कोरे शामिल थे। स्टोफेन कोरे के मुताबिक क्रियात्मक अनुसंधान का अभिप्राय उस प्रतिक्रिया से है जिसके द्वारा अभ्यासकर्ता अपने निर्णयों तथा प्रतिक्रियाओं का पथ-निर्देशन एवं मूल्यांकन करने के लिए अपनी समस्याओं का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करने के प्रयत्न करते हैं। किसी भी व्यवस्था को भली प्रकार संचालन के लिए उसके सदस्य ही उत्तरदायी होते है। उनके समक्ष समस्याएं आती है, उसकी गहनता को कार्यकर्ता ही भली प्रकार समझ सकता है। अतः कार्यकर्ता को कार्यप्रणाली की समस्या के चयन करने तथा उसके समाधान ढूंढने की पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए तभी वह अपने कार्य कौशल का विकास कर सकता है। कार्यकर्ता द्वारा स्वयं की कार्यप्रणाली की समस्या का चयन करने, उसका वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करने एवं समाधान ढूंढकर वर्तमान क्रिया में सुधार करने की प्रक्रिया को क्रियात्मक अनुसंधान कहते है।

क्रियात्मक अनुसंधान इस प्रकार अनुसंधान की नवीनतम शाखाओं में से एक है। संक्षेप में कह सकते हैं, क्रियात्मक अनुसंधान का अभिप्राय विद्यालय में संपादित की गई उस क्रिया है से जिसके द्वारा विद्यालय की कार्य-प्रणाली में सुधार, संशोधन एवं प्रगति के लिए विद्यालय के ही अभ्यासकर्ता जैसे-शिक्षक, प्रधानाध्यापक, प्रबंधक तथा निरीक्षक विद्यालय की समस्याओं का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करते हैं। 

क्रियात्मक अनुसंधान में विद्यालय की समस्याओं का विधिपूर्वक अध्ययन होता है। इसमें अनुसंधानकर्ता विद्यालय के शिक्षक, प्रधानाध्यापक, प्रबंधक और निरीक्षक स्वयं ही होते हैं। इस अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य विद्यालय की कार्यप्रणाली में संशोधन कर सुधार लाना है। क्रियात्मक अनुसंधान में संपादित करने में शिक्षक, प्रधानाध्यापक, प्रबंधक और निरीक्षक वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हैं। अनुसंधान के अंतर्गत तत्कालीन प्रयोग पर अधिक बल देते हैं। क्रियात्मक अनुसंधान के उत्पादक और उपभोक्ता दोनों ही स्वयं शिक्षक, प्रधानाध्यापक, प्रबंधक और निरीक्षक होते हैं।  वीवी कामत ने अपने एक लेख में (कैन ए टीचर डू रिसर्च टीचिंग, 1975) भारत में अनुसंधान के कुछ क्षेत्रों का उल्लेख किया, जो इस प्रकार है। भिन्न-भिन्न भाषाओं में विभिन्न आयु वर्ग के बच्चों का शब्द भंडार, भारत में पब्लिक स्कूल, भाषा सीखने में भूलें, विभिन्न आयु वर्ग के बच्चों की ऐच्छिक क्रियाएं। विभिन्न आयु वर्ग के बच्चों की लंबाई, भार तथा अन्य शारीरिक लक्षण, भूगोल एवं इतिहास की अध्यापन पद्धतियां शामिल हैं। बालकों एवं बालिकाओं की अध्ययन अभिरूचियां, कुशाग्र बुद्धि बालकों की शिक्षा, मानसिक रूप से पिछड़े बालकों की शिक्षा भी शामिल करने पर जोर था। भारतीय शिक्षाशास्त्रियों का शैक्षणिक क्षेत्र में योगदान, माध्यमिक विद्यालयों में विभिन्न आयु वर्ग के छात्रों एवं छात्रों की मन पसंद क्रियाएं (हाबीज) पर भी जोर दिया गया था। प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों की शैक्षिक योग्यताएं, नगर तथा ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों की उपलब्धियों में अंतर, शिशु विद्यालयों में पढ़े हुए तथा न पढ़े हुए बच्चों का तुलनात्मक अध्ययन की बात कही गई थी। इन सूचियों पर गौर करने से इनमें कुछ ऐसी समस्याएं हैं जो क्रियात्मक अनुसंधान के अंतर्गत आती है। उन पर अनुसंधान होने से शिक्षा की अनेक महत्वपूर्ण समस्याओं का समाधान संभव होगा और वे अनुसंधान राष्ट्र के विकास में सहायक होंगे। शिक्षा में क्रियात्मक अनुसंधान की समस्याओं का स्रोत स्वयं स्कूल होता है। स्कूल की कार्य प्रणाली में प्रत्येक समस्या का उद्गम खोजा जा सकता है। समस्या का उचित चयन करने के बाद उसके स्वरूप का विश्लेषण जरूरी है। इसका अभिप्राय समस्या को निश्चित रूप से स्थापित करना है। ऐसा करना अनुसंधान की सफलता के लिए आवश्यक चरण है। समस्या को परिभाषित करने के बाद उसका मूल्यांकन करना बहुत जरूरी है। इस मूल्यांकन से अनुसंधानकर्ता को समस्या के अपेक्षित परिणाम का ज्ञान हो जाता है। शिक्षकों, प्रधानाध्यापकों, प्रबंधकों तथा निरीक्षकों को क्रियात्मक अनुसंधान द्वारा कार्य करते हुए सीखने का अवसर मिलता है, जो ज्ञान कार्य करते हुए अर्जित किया जाता है, वह अधिक स्थायी तथा व्यावहारिक होता है।

भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए अनुसंधान कार्य की जरूरी है। शिक्षा के क्षेत्र में इसकी अधिक आवश्यकता है, क्योंकि अन्य क्षेत्रों में होने वाली उन्नति क्षैक्षिक क्षेत्र में उन्नति पर अवलंबित रहती है। ऐसी परिस्थिति में शिक्षा में कुछ नवीन और विशिष्ट अनुसंधानों किए जाने आवश्यक है। इन अनुसंधानों में क्रियात्मक अनुसंधान को प्रमुख स्थान देना होगा, क्योंकि इस प्रकार के अनुसंधानों का स्कूलों की गतिविधियों तथा कार्य करने वाले व्यक्तियों से प्रत्यक्ष संबंध होता है। हमारे स्कूल और शिक्षा तब तक परंपरागत लीक पर ही कायम रहेंगे जब तक शिक्षक, शैक्षिक प्रशास, अभिभावक और खुद छात्र इसका मूल्यांकन नहीं करेंगे। शिक्षा में यदि कोई विकास की दिशा दिखाई दे रही है शिक्षित व्यक्ति विद्यालय से बाहर आकर समाज एवं कार्यक्षेत्र में अपने को स्थापित नहीं कर पाता। ऐसी स्थिति के लिए शिक्षा को जवाबदेह माना जाता है, इसलिए इसमें सुधार होना आवश्यक है। इस लिहाज से सभी के सहयोग से क्रियात्मक अनुसंधान किया जाना आवश्यक है। खुद छात्र भी क्रियात्मक अनुसंधान से लाभांवित होंगे। साथ ही वे इसमें सहयोग और अपनी शैक्षिक क्षमता तथा योग्यता विकसित करने के लिए प्रेरित होंगे।

अधिक जानकारी और करियर काउंसिलिंग के लिए संपर्क करे 9871949259, हमारा इमेल है anandmohan@consultant.com



Sunday, 30 July 2017

DMIT के फायदे ....आप भी जानिये

आज सक्सेस सभी चाहते हैं, लेकिन यह सबको मिलती कहां है? और मिले भी तो कैसे ?? जब आप खुद उलटी दिशा में चल रहे है I हम बस किसी तरह से सफल होना चाहते है , और हमारी सफलता की परिभाषा है उच्च शिक्षा के बाद आच्छी सी नौकरी और मोटी सैलरी... कई बार तो यह अच्छी एजुकेशन और पर्याप्त मेहनत के बाद भी नहीं मिलती। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि लोग अपने लिए गलत फील्ड डिसाइड कर लेते हैं। जब तक उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है, तब तक काफी देर हो जाती है और वे अपने कलीग्स से करियर की रेस में पीछे हो जाते हैं। इस सिचुएशन से बचने के लिए अपना गोल डिसाइड करने से लेकर सक्सेस मिलने तक हर कदम पर अपनी इंटेलिजेंस को यूज करें। अगर इन पांच प्वॉइंट्स पर फोकस करेंगे, तो सक्सेस आसानी से मिल सकती है
#Decide_your_Goal
सक्सेसफुल पर्सनैलिटीज की बात करें, तो उन्होंने पहले अपना गोल डिसाइड किया और फिर उस दिशा में काम शुरू किया। आप भी इस फार्मूले को अपना सकते हैं। अपना गोल, अपनी इन्बोर्न स्ट्रैंथ, इंट्रेस्ट और प्रॉयरिटी के बेस पर तय करें। हम यह काम कर सकते हैं? हमारी रुचि इसमें है या नहीं? हमारी प्रॉयरिटी में इसका क्रम क्या है? इसकी जानकारी के लिए हम से संपर्क करे 09871949259 पर हम आपको आपकी जन्मजात क्षमता और प्रतिभा के आधार पर आपको अपने जीवन के लक्ष्य और उसके आधार पर ही अपना टारगेट डिसाइड करने में मदद करेंगे I
#Decide_your_work_strategy
गोल डिसाइड करने के बाद सेकंड स्टेप में उसे हासिल करने के लिए वर्क स्ट्रैटेजी बनानी है। इसी वर्क स्टै्रटेजी के बेस पर सक्सेस तक पहुंचना है। स्ट्रैटेजी बनाते समय अपनी कैपेसिटी को ज्यादा या कम नहींआंकना चाहिए। यह रणनीति रियलिटी पर निर्धारित होगी, तभी अच्छा रिजल्ट मिलेगा। वर्क स्ट्रैटेजी बनाने में आप किसी एक्सपर्ट या सीनियर की हेल्प ले सकें, तो रिजल्ट और भी अच्छा मिल सकता है। ध्यान रखें कि वर्क स्ट्रैटेजी, आपके वर्क शिड्यूल से मैच करे और कहीं से भी वह आपकी वर्क कैपेसिटी से ओवर न हो। इस प्वॉइंट पर हम जितनी ईमानदारी बरतेंगे, सफलता की मंजिल उतनी ही करीब आती जाएगी।
टारगेट डिसाइड करने और वर्क स्ट्रैटेजी बनाने के बाद अब अपनी उन कमियों को दूर करने की कोशिश करें, जो सक्सेस में बाधा बन सकती हैं। समझदारी से काम लेते हुए अपने वीक प्वॉइंट्स पहचानें। फ्रेंड्स, गार्जियन या टीचर की मदद लें, जिनसे आपको अपनी कमियां जानने में मदद मिलेगी। अपने आप से क्वैश्चन करें कि क्या ये कमियां हमारी सक्सेस में बाधा बन सकती हैं? अगर आंसर हां हो, तो स्ट्रैटेजी में थोडा बदलाव करते हुए पहली प्रॉयरिटी इन वीक प्वॉइन्ट्स को दूर करने की बनाएं।
स्टेप-बाय-स्टेप स्ट्रैटेजी डेवलप करने के बाद अब मंजिल की तरफ कदम रखें। फाइनल गोल के लिए हम जो तैयारी कर रहे हैं, क्या वह सही दिशा में चल भी रही है या नहीं? यह भी जज करना जरूरी है। अगर हमें यही नहीं पता होगा, तो मुमकिन है कि आखिरी पलों में हमारी रफ्तार कम हो जाए। इससे बचने के लिए एक निश्चित समय के बाद अपनी तैयारी को खुद या किसी सीनियर से टेस्ट कराएं। इससे पता चल जाएगा कि फाइनल स्टेज तक पहुंचने के लिए कितना एफर्ट लगाए जाने की जरूरत है।
#Analyse_your_Mistakes
आप अपना वर्क जज करना शुरू करेंगे, तो बहुत सी गलतियां आपके सामने आने लगेंगी। इन मिस्टेक्स को नजरअंदाज न करें। गलतियों को इग्नोर करना सबसे बडी मिस्टेक है। मिस्टेक्स क्यों हो रही हैं, इस पर ध्यान दें और पूरे प्रिपरेशन के साथ इन्हें दूर करें।

Monday, 17 July 2017

हमारे बच्चों में अपने समाज एवं राष्ट्र तथा धर्म के प्रति .......



हमारे भारतवर्ष में हम यदि बच्चों का अवलोकन करें तो सबसे पहले ये ध्यान में आता है कि हमारे बच्चों में अपने समाज एवं राष्ट्र तथा धर्म के प्रति अभिमान का अत्यंत अभाव है । यदि यह स्थिति ऐसी ही रहती है तो राष्ट्र का विनाश होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा । अत: हमें बच्चों में राष्ट्र के प्रति स्वभिमान निर्माण करने हेतु प्रयास करने ही होंगे । राष्ट्र के नागरिकों की समरूपता तथा संगठन से राष्ट्र का अखंडत्व बना रहता है । आज के विद्यार्थी ही कल के भारत के भावी नागरिक होते हैं। इसलिए विद्यार्थिंयों में बचपन से ही प्रखर राष्ट्राभिमान निर्माण करना अत्यंत आवश्यक है। अन्यथा बडे होकर समाजके लिए अर्थात राष्ट्रके लिए त्याग करने की वृत्ति उनमें निर्माण नहीं हो सकती। वस्तुतः इतिहास विषय पढकर बच्चों में राष्ट्राभिमान निर्माण होना चाहिए था; परंतु हमारी शिक्षा पद्धति अंकों पर आधारित है । परीक्षाओं का मूल्य मापन अंकों के आधार पर किया जाता है । इसलिए बच्चों का ध्यान अंक वृद्धी की ओर ही होता है । वर्तमान में बच्चे अन्य विषयों के समान `इतिहास’ विषय केवल अंकों के लिए ही सीखते हैं, उदा. भगत सिंह विषय दस अंकोंके लिए । हमें बच्चों का इसके पीछे जो दृष्टिकोण है उसे ही परिवर्तित करना होगा । इतिहास अंकों के लिए न पढकर उससे उनमें राष्ट्रप्रेम निर्माण हो, इस दृष्टिसे उन्हें पढाना होगा एवं यही दृष्टिकोण पालक तथा शिक्षकों को बच्चोंको देना होगा । यदि भावी पीढी राष्ट्रप्रेमी नहीं होगी, तो राष्ट्रका अर्थात ही हमारा विनाश अटल है । आज हम अपने बच्चो को चॉइस नही चांस के आधार पर पढाई करने के लिए दबाव डालते है , जबकि हमें उनके जन्मजात बुद्धिमता व क्षमता के आधार पर शिक्षा देनी चाहिए । आज जापान, अमेरिका, कनाडा जैसे देश अपने बच्चो को उनके प्रतिभा के अनुसार पढाई करने को प्रोत्साहित करते है, वही हमारे यहाँ पडोसी के बच्चे की देखा-देखि अपनों बच्चो का विषय चयन करते है। D.M.I.T की मदद से आप अपने बच्चे की जन्मजात प्रतिभाएं, कैरियर चयन और मस्तिष्क के विकास के कई पहलूओं के बारे में जान सकते हैं।
क्या आपने कभी स्वयं से यह प्रश्न पूछा है।;क्यों?“
एक जैसी उम्र।

एक ही क्लास।

वही टीचर।

वही किताबें।

वही पढाने का तरीका।

और परिणाम अलग-अलग।

फिर क्यों

कुछ बहुत अच्छे।

कुछ मध्यम।

और कुछ बहुत खराब।

विद्यार्थी।

हमारे पास आपके इन सब क्यों का जवाब है।

किसी को प्रतिभावान बनाया नहीं जा सकता, लेकिन प्रतिभाओं को किसी भी इंसान के अंदर से खोज कर निकाला जा सकता है।

हर कोई प्रतिभाशाली है, जब वह सही स्थिति (दिशा) में हैं।

सभी बच्चे पैदायशी प्रतिभाशाली होते हैं।।

प्रतिभा की परिभाषा प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग-अलग प्रकार से होती है। और फिर दुविधा का सामना होता है ………

अब आप भी अपने और अपने बच्चे का जन्मजात बुद्धिमता और प्रतिभा जान सकते है वो भी सिर्फ १ घंटे में अधिक जानकारी के लिए कॉल करे 9871949259


Sunday, 9 July 2017

हमारा अनुभव साक्षी है की राष्ट्रिय चरित्र के अभाव में हमने अपने राष्ट्र को अपमानित...

भारतीय परम्परा के अनुसार ईश्वर उपासना में सर्वप्रथम गुरू पूजन किया जाता है । हमारे संस्कृति में हमेशा से ही गुरु जी का एक विशिष्ट स्थान रहा है, हम जब अपने स्कूल जाते थे  तो सर्वप्रथम वहां ऊपस्थित  सभी गुरु जी का चरण स्पर्श करते थे, गुरु  भी  पुरे  निष्ठा से  हमें  आशीर्वचन देते  थे , परन्तु  दुर्भाग्यवश अब आधुनिकता के भेड चाल हम पाश्चात्य शिक्षण पद्धति को अपना चुके है और उसका  नतीजा  ये है की अब हमारे बच्चे  अपने माता पिता का अनादर करने लगे है तो भला हम किसी और के बच्चे से आदर का भाव कैसे उम्मीद कर सकते है । अतः अब यह नितांत आवश्यक है की हम अपने बच्चो को अपने अतीत से जागरूक करवाए, उन्हें बताये की वेद वंदना के साथ साथ राष्ट्रवंदना का स्वर भी दिशाओ में गूंजना आवश्यक है । 
शिक्षक और समाज गौरव्भुषित तब होगा जब यह राष्ट्र गौरवशाली होगा, और यह राष्ट्र गौरवशाली तब होगा जब यह राष्ट्र अपने जीवन मूल्यों व परम्पराओ को निर्वाह करने में सफल व सक्षम होगा, यह राष्ट्र सफल व सक्षम तब होगा जब शिक्षक अपने उतरदायित्व का निर्वाह करने में सफल होगा, और शिक्षक सफल तब कहा जायेगा जब वह प्रत्येक व्यक्ति में राष्ट्रिय चरित्र का निर्माण करने में सफल हो, यदि व्यक्ति राष्ट्र भाव से शून्य है, राष्ट्र भाव से हीन है, और अपने राष्ट्रीयता के प्रति सजग नही है तो यह शिक्षक की असफलता है  हमारा अनुभव साक्षी है की राष्ट्रिय चरित्र के अभाव में हमने अपने राष्ट्र को अपमानित होते देखा है, हमारा अनुभव है की हम शस्त्र से पहले हम शाश्त्र के अभाव में पराजित हुवे है मित्रो परमात्मा का साक्षात्कार तो इतना सरल नही है लेकिन वही परमात्मा इस संसार में साकार रूप में आपकी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप में सहायता करता है। गुरूदेव के मार्गदर्शन से ही साधक ईश्वर को प्राप्त करता है। बिना गुरू के ईश्वर को पाना इतना सरल नही है। यदि ईश्वर को पाना इतना सरल हो जाये तो ईश्वर का महत्व ही इस संसार से समाप्त हो जायेगा। यदि ईश्वर की अनुभूति शीघ्र हो जाये तो साधक को इस बात का अंहकार हो जाता है एवं उसकी आध्यात्मिक प्रगति रूक जाती है, इसीलिए ईश्वर ही स्वप्न व ध्यान में संकेत द्वारा गुरू रूप में दर्शन देकर मार्ग प्रदर्शन करता है। इष्ट ही गुुरू रूप में दर्शन देता है। गुरू ईश्वर की महिमा का वर्णन करता है एवं इष्ट ही गुरू रूप में दर्शन देकर गुरू की महिमा बढ़ाता है । आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा कहते हैं। भारत भर में यह पर्व बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन गुरुपूजा का विधान है। वैसे तो दुनिया में कई विद्वान हुए हैं परंतु चारों वेदों के प्रथम व्याख्या कर्ता व्यास ऋषि थे, जिनकी आज के दिन पूजा की जाती है। हमें वेदों का ज्ञान देने वाले व्यासजी ही हैं। अतः वे हमारे आदिगुरु हुए, इसीलिए गुरुपूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। उनकी स्मृति को ताजा रखने के लिए हमें अपने-अपने गुरुओं को व्यासजी का अंश मानकर उनकी पूजा करके उन्हें कुछ न कुछ दक्षिणा देते हैं। हमें यह याद रखना चाहिए कि महात्माओं का श्राप भी मोक्ष की प्राप्ति कराता है। यदि राजा परीक्षित को ऋषि का श्राप नहीं होता तो उनकी संसार के प्रति जो आसक्ति थी वह दूर नहीं होती। आसक्ति होने के कारण उन्हें वैराग्य नहीं होता और वैराग्य के बिना श्रीमद्भागवत के श्रवण का अधिकार प्राप्त नहीं होता। साधु के श्राप से ही उन्हें भगवान नारायण, शुकदेव के दर्शन और उनके द्वारा देव दुर्लभ श्रीमद्भागवत का श्रवण प्राप्त हुआ। इसके मूल में ही साधु का श्राप था। जब साधु का श्राप इतना मंगलकारी है तो साधु की कृपा न जाने क्या फल देने वाली होती होगी। अतः हमें गुरूपूर्णिमा के दिन अपने गुरु का स्मरण अवश्य करना चाहिए।